25 दिन बाद इस देश पर हमला कर सकता है रूस, तैनात की मिसाइले…

इसके बाद आया साल 1994 में रूस ने मध्यस्थता की और युद्धविराम हो गया, लेकिन नागोरनो काराबाख के अलावा अजरबैजान के बड़े हिस्से पर आर्मीनिया ने कब्जा कर लिया।

 

डील ये हुई कि जब तक विवाद का हल नहीं हो जाता, तब तक नक्शे पर नागोरनो-काराबाख अजरबैजान का ही हिस्सा रहेगा, लेकिन वहां की अपनी सरकार होगी। इसी डील के तहत नागोर्नो-काराबाख लाइन ऑफ़ कॉन्टैक्ट भी बनी। लगा कि अब इस इलाके में शांति कायम हो जाएगी, लेकिन तभी तुर्की ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।

इस इलाके में इन तीनों बड़े शिकारियों के अपने-अपने हित हैं। इसलिए आज तक शांति वार्ता जारी है और ये कमेटी आज तक कभी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची है। वक्त गुजरता गया और फिर आया 1980 का दशक आया, जब यहां असली विवाद शुरू हुआ।

1980 के दशक में जब सोवियत संघ का विघटन होने लगा और नागोर्नो काराबाख की संसद ने आधिकारिक तौर पर खुद को आर्मीनिया का हिस्सा बनने के लिए बहुमत से वोट कर दिया।

नतीजा ये हुआ कि अजरबैजान ने नागोरनो काराबाख पर हमला बोल दिया। पीछे से आर्मीनिया ने नागोरनो काराबाख में सेना भेज दी। कई साल युद्ध चला, हजारों लोग मारे गए और लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर पलायन करना पड़ा।

1918 और 1921 में आर्मीनिया और अजरबैजान आज़ाद हुए 1920 में सोवियत संघ बना 1922 में आर्मीनिया, नागोरनो काराबाख और अज़रबैज़ान सोवियत संघ का हिस्सा बन गए रूस के महान नेता स्टालिन ने नागोरनो-काराबाख को अज़रबैजान में मिला दिया नागोरनो-काराबाख की जनता ने इसका विरोध किया

नागोरनो काराबाख में रहने वाले आर्मीनियाई मूल के ईसाइयों और अजरबैजान के बीच खटास काफी पुरानी है। इस इलाके में समय-समय पर छुटपुट बगावत होती रहीं है। इस इलाके में शांति बनाए रखने के लिए साल 1929 में एक कमेटी बनी। मिंस्क का पूरा नाम – ऑर्गेनाइज़ेशन फ़ॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप था, जिसमें फ्रांस, रूस, अमेरिका अध्यक्ष बने।

पेंच ये है कि नागोरनो-काराबाख खुद को एक अलग स्वतंत्र देश बताता है, जिसकी अपनी सरकार है, अपनी फौज है और अपना संविधान है यानी दुनिया के नक्शे पर भले ही नागोरनो काराबाख अजरबैजान का हिस्सा दिखे, लेकिन नागोरनो काराबाख पर अजरबैजान का कोई नियंत्रण नहीं है।

अजरबैजान के दो हिस्से हैं, दोनों हिस्सों के बीच में आर्मीनिया है यानी अजरबैजान के दोनों हिस्से एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं, लेकिन अजरबैजान अपने दूसरे हिस्से पर तुर्की के जरिये नियंत्रण करता है। तुर्की अजरबैजान का पक्का दोस्त है। तुर्की मूल का होने की वजह से दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे को भाई और रिश्तेदार तक मानते हैं।

नागोरनो-काराबाख के 4400 वर्ग किलोमीटर का पहाड़ी इलाका है, दुनिया के नक्शे पर अज़रबैजान का हिस्सा है। लेकिन आर्मीनिया इसे अपना बताता है। आर्मीनिया ईसाइयों का देश है.

तो अजरबैजान तुर्क मुसलमानों का। नागोरनो-काराबाख में ज्यादातर आर्मीनियाई मूल के ईसाई रहते हैं, इसलिए वो अपने को आर्मीनिया का करीबी और अजरबैजान से दूर मानते हैं।