काले हिरणों को बचाने के लिए बिहार मे होगा ये, क्सर के12 एकड़ क्षेत्र में बनेगा…

बक्सर के विभिन्न इलाकों में बड़े पैमाने पर जाये जाने वाले काले हिरणों को बचाने के लिए कवायद शुरू हो गयी है. विलुप्त हो रहे काले हिरणों को संरक्षित करने को लेकर जिलाधिकारी ने नावानगर प्रखंड में 12 एकड़ सरकारी जमीन का चयन कर प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया है. चयनित जमीन को वन एवं पर्यावरण विभाग को भी डीपीआर तैयार कर भेजा गया है.

बकौल डीएम यदि सरकार ने इस योजना को मंजूरी दे दी तो शीघ्र ही दुर्लभ प्रजाति के काले हिरणों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि काले हिरणों के लिए नावानगर में रेस्क्यू सेंटर (अभयारण्य) बनाया जायेगा, जहां पर कुत्तों या जंगली जानवरों का शिकार हुए हिरणों को लाकर उनके इलाज समेत रहने की समुचित व्यवस्था की जायेगी.

इस बाबत विभाग विभाग से बातचीत कर इसे अमली जामा पहनाने की कवायद जारी है. उन्होंने कहा कि बक्सर जिले में पाये जाने वाले काले हिरणों को लाकर यह रखा जायेगा, ताकि दूर-दराज से आये लोग इनका दीदार कर सकें. बक्सर में हिरणों की कई प्रजातियां पायी जाती हैं. इनकी हत्या पर वाइल्ड एनिमल एक्ट के तहत जेल और अर्थदंड की सजा है.

जिले के नैनीजोर स्थित गंगा के किनारे, बिहार घाट व शिवपुर दियारे का इलाका, विनोबा वन, बगेन गोला, भदवर गांव के जमुई वन, चौगाईं, सरैयां, राजपुर के इलाके में ये हिरण बहुतायत पाये जाते हैं. वर्ष 2010-11 में सरकार ने ब्लैक बक सफारी नाम से योजना भी बनायी थी. तब कैंपा फंड के तहत बोर्ड लगाकर इन इलाकों को वन विभाग ने सुरक्षित घोषित किया था.

बोर्ड पर लिखा था- ‘मृगों में सरताज है कृष्ण मृग, बक्सर की धरती पर वरदान है कृष्ण मृग. लेकिन, वर्षों तक बंद पड़ी यह योजना अब डीएम अमन समीर की पहल पर सार्थक होने जा रही है. डीएफओ मीर कुमार झा ने बताया कि नावानगर में एक अभ्यारण्य तैयार करने की योजना बनाकर विभाग को दी गयी है.

उन्होंने कहा कि हिरणों की प्रजाति बक्सर के विभिन्न इलाकों के जंगली हिस्सों में प्राय: मिल जाती है. जानकार बताते हैं कि यहां पहले काले हिरण, बारासिंघा, चिंकारा व सांभर मिलते थे, जिनमें बारासिंघा व चिंकारा की प्रजाति लगभग विलुप्त हो चुकी है. लोगों की मानें तो वर्ष 2013 में हिरणों की गणना की गयी थी.

सर्वे में काले हिरणों की संख्या करीब तीन हजार आंकी गयी थी, लेकिन सर्वे का काम विभागीय स्तर पर पूरा नहीं हुआ. अब काले हिरणों की संख्या भी महज 1500 के करीब सिमट गयी है. हालांकि पीले और काले धब्बेवाले हिरणों की अधिकता ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी मिलती है. इन्हें वन विभाग ने ब्लैक बक का नाम दिया है. ये हिरण कैमूर, रोहतास तथा उत्तर बिहार के नेपाल से सटे जंगली क्षेत्रों से भागकर यहां आये थे.