आज सीएए से जुड़े मुद्दों पर समान विचारधारा वाली पार्टियों की बैठक आयोजित करेंगी सोनिया गांधी

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और उसके कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के मद्देनजर सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई गई है। सूत्रों का कहना है कि 13 जनवरी को समान विचारधारा वाली पार्टियों की बैठक में सीएए से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी और मोदी सरकार को संसद के आगामी बजट सत्र के दौरान और सड़क पर भी घेरने के लिए इन दलों को साथ लेने की कोशिश होगी। इस बैठक को सोनिया गांधी ने बुलाया है।

सीएए के खिलाफ एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए और छात्रों के खिलाफ पुलिस की कथित बर्बरता के विरोध में सभी विपक्षी दल संसद उपभवन में बैठक करेंगे। विपक्षी दलों की यह बैठक आज दोपहर दो बजे होगी, जिसमें नागरिकता कानून और देश के राजनीतिक हालात पर चर्चा होगी।मगर बैठक से पहले विपक्षी एकता की इस कवायद को ममता बनर्जी और बसपा प्रमुख मायावती ने बड़ा झटका दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा प्रमुख मायावती ने इस बैठक में शामिल नहीं होने का पहले ही ऐलान कर दिया है।

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सभी विपक्षी राजनीतिक दल इस बैठक में शामिल होंगे। समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के नए गठबंधन साझेदार शिवसेना बैठक में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) ने पहले ही सीएए और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को वापस लेने की मांग की है। सीडब्ल्यूसी के इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते ही कांग्रेस शासित राज्य इस संकल्प को अपना सकते हैं।

बैठक में बसपा के शामिल होने की संभावना क्षीण
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हो रहे प्रदर्शनों और उसके कारण विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा के मद्देनजर सोमवार (13 जनवरी) को बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में संभवत: हिस्सा नहीं लेगी। बसपा सूत्रों ने बताया कि पार्टी संभवत: बैठक में किसी प्रतिनिधि को नहीं भेजेगी। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस के साथ बसपा के मतभेद को इस कदम का कारण बताया जा रहा है।

ममता बनर्जी भी कर चुकी हैं इनकार
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस बैठक में आने से स्पष्ट इंकार कर चुकी हैं। सीएए के खिलाफ जब विपक्षी दल राष्ट्रपति के पास गए थे, उस वक्त भी बसपा उनके साथ नहीं थी। हालांकि पार्टी ने बाद में इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट की थी।