उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में हुआ ये बड़ा बदलाव, हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला

यूपी सरकार पहले पंचायत चुनाव को मई के महीने में कराना चाहती थी, लेकिन कोर्ट ने उस समय अप्रैल तक कराने की डेडलाइन तय कर दी थी.

इसी मद्देनजर पंचायत चुनाव की तैयारी चल रही थी, लेकिन आरक्षण सूची आने के बाद अब कोर्ट ने सरकार को मई तक चुनाव कराने की तारीख तय कर दी है, जो बीजेपी के मन की मुराद पूरी हो गई है. देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव अप्रैल में होने हैं, जहां सीएम योगी आदित्यनाथ स्टार प्रचारक की भूमिका में है.

तो बीजेपी के तमाम नेता चुनावी अभियान में लगाए गए हैं. अप्रैल में पंचायत चुनाव होने की स्थिति में बीजेपी कशमकश में फंसी हुई थी. अब मई में चुनाव कराने का कोर्ट आदेश देकर सरकार की मंशा को पूरा कर दिया है.

दरअसल, यूपी में लंबे समय तक बीजेपी सत्ता से बाहर रही थी जबकि इस बीच सपा और बसपा को सत्ता में रहने का पंचायत चुनाव में फायदा मिलता रहा है. बीजेपी 2017 में सूबे की सत्ता में लौटी है और अब उसकी नजर पंचायतों पर सियासी तौर पर कब्जा जमाने की है.

माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत योगी सरकार ने 2015 के आरक्षण फॉर्मूले में बदलाव कर 1995 को बेस बनाया ताकि लंबे समय से गांव की पंचायतों पर काबिज विपक्षी दलों के सियासी वर्चस्व को तोड़ा जा सके, लेकिन अब अदालत के फैसले ने अब उसे पलट दिया है.

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में 2021 के आरक्षण फॉर्मूले को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज करते हुए 2015 के चक्रानुक्रम के आधार पर नए सिरे से सीटों के आवंटन व आरक्षण का आदेश दिया है.

हाईकोर्ट ने साफ किया है कि प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए जारी की नई आरक्षण प्रणाली नहीं चलेगी बल्कि 2015 को आधार मानकर ही आरक्षण सूची जारी की जाए.

अदालत ने कहा कि 25 मई तक पंचायत चुनाव संपन्न कराए जाएं. कोर्ट के फैसले से एक तरफ योगी सरकार को आरक्षण पर सियासी तौर पर झटका लगा है तो दूसरी तरफ मई में चुनाव कराने की मंशा भी पूरी हो गई है.