इंसानों के रहने लायक नहीं बचेगा ये देश , पक्षी आसमान में मर रहे …

आर्थिक रूप से संपन्न कुवैत में जलवायु संकट को काफी नजरअंदाज किया गया है. हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां पड़ने वाली गर्मी लोगों को झुलसा रही है. पक्षी आसमान में मर रहे हैं और मछलियां खाड़ी में.इराक और सऊदी अरब के बीच बसा छोटा सा देश कुवैत दुनिया में सबसे ज्यादा तेल उत्पादन करने वाले देशों में से एक है. यह देश काफी अमीर भी है. हालांकि, जब जलवायु संकट की बात आती है, तो कुवैत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में भी सबसे आगे है.

आवर वर्ल्ड इन डेटा की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में कुवैत ने 20 टन से अधिक CO2 का उत्सर्जन किया. जबकि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ने सिर्फ 0.03 टन का उत्सर्जन किया. हालांकि, अब कुवैत भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को काफी ज्यादा महसूस कर रहा है. 2016 में देश के उत्तर-पश्चिम स्थित एक क्षेत्र में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.

यह पृथ्वी पर अब तक का दर्ज किया गया तीसरा सबसे उच्चतम और हाल के समय में दर्ज किया गया सबसे ज्यादा तापमान है. मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली सेवा एक्यूवेदर के मुताबिक, कुवैत में पिछले साल 19 दिन तापमान 50 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक दर्ज किया गया था. इतनी ज्यादा गर्मी देश को निर्जन बना सकती हैं. समाचार एजेंसी एपी ने बताया कि गर्मी की वजह से मरे हुए पक्षी आसमान से जमीन पर गिर रहे थे और खाड़ी में समुद्री मछलियां (सीहॉर्स) गर्म पानी में उबल कर मर रही थीं. समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण समुद्री प्रजातियां अन्य क्षेत्रों में जा सकती हैं.

इससे स्थानीय मछली उद्योग समाप्त हो सकते हैं. प्रवासियों के लिए खतरे की घंटी लंबे समय तक इन चिलचिलाती धूप में रहने की वजह से इंसान हृदय संबंधी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं. यहां तक कि उनकी मौत भी हो सकती है. ऐसे में लोग गर्मी से बचने के लिए घर, ऑफिस या मॉल में एयर कंडीशनर का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, एयर कंडीशनर के इस्तेमाल की वजह से कुवैत में जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाली ऊर्जा की जरूरत बढ़ गई है. 2020 के एक अध्ययन में पाया गया है कि कुवैत के घरों में इस्तेमाल होने वाली बिजली का 67 फीसदी हिस्सा एयर कंडीशनर में खर्च होता है.

सरकार बिजली पर इतनी सब्सिडी देती है कि यहां के लोग बिजली की खपत कम करने पर विचार ही नहीं करते हैं. हालांकि, देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घर में एयर कंडीशनर का इस्तेमाल करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं. इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के अनुसार, कुवैत में एक बड़ी आबादी प्रवासियों की है. ये देश की कुल आबादी का 70 फीसदी है. उनमें से कई लोग निर्माण, कृषि या डिलिवरी के क्षेत्र में काम करते हैं. साइंस डायरेक्ट के एक अध्ययन में पाया गया कि तापमान बढ़ने पर स्थानीय पुरुषों की तुलना में प्रवासी लोगों के मरने का खतरा अधिक था.

देश में धूल भरी आंधी, बाढ़ और गर्म हवाएं चलने जैसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां रहने वाले लोग इन प्रभावों पर चर्चा कर रहे हैं. हालांकि, अभी तक कई लोग इस समस्या के मूल कारणों से अवगत नहीं हैं. अध्ययन में कहा गया है कि विशेष रूप से पुरानी पीढ़ियों के लोग इन घटनाओं को दैवीय प्रभाव मानते हैं और ऐसे लोग सार्वजनिक परिवहन जैसे समाधानों के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं. नीतिगत स्तर पर इच्छा शक्ति का अभाव पर्यावरणविद चिंतित हैं कि तुरंत उचित कार्रवाई करने की कमी को नीतिगत स्तर पर भी महसूस किया जा सकता है.