भारत के खिलाफ युद्ध की साजिश कर रहा ये देश, तैनात की मिसाइले

तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जे के माध्यम से चीन ऊपरी तटवर्ती इलाकों को नियंत्रित करने में सक्षम है और किसी भी देश से संघर्ष की स्थिति में चाहे तो वह पानी के बहाव में रुकावट खड़ी कर सकता है या फिर उसकी दिशा बदल सकता है.

 

जैसा कि उसने बीते कुछ दिनों में भारत के साथ तनाव पैदा होने के बाद किया था. 2017 में डोकलाम तनाव के बाद चीन ने एक साल तक ब्रह्मपुत्र और सतलज नदियों के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को भारत के साथ साझा नहीं किया था.

निचले तटवर्ती राष्ट्र और राज्यों के लिए जल संसाधन प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और अन्य दूसरी गतिविधियों के लिए नदियों के ऊपरी तटों का डेटा बेहद जरूरी है.

चीन पहले ही बांधों का तेजी से निर्माण करने में जुटा है और तिब्बत से दूसरे देशों की ओर बहने वाली नदियों पर कई बांध बना रहा है. चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चार बांध तैयार किए हैं.

जिन्हें तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो के नाम से जाना जाता है और ऐसी खबरें हैं कि चीन एलएसी के नजदीक नदी की धारा की दिशा में एक दूसरा बांध, जिसे सुपर डैम भी कहा जा रहा है, तैयार करने की योजना बना रहा है.

तिब्बत को ‘वॉटर टावर ऑफ एशिया’ के रूप में जाना जाता है और ऐसे में चीन इसका इस्तेमाल एशिया के कई देशों के साथ तोल-मोल करने या फिर उसे धमकी देने के लिए कर सकता है.

एशिया की दस अहम नदियां, जिसमें सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सालविन, येलो, यांगत्जी और मेकॉन्ग शामिल हैं, तिब्बत से ही निकलती हैं और ये सभी नदियां चीन, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, वियतनाम, बर्मा, कम्बोडिया और लाओस जैसे देशों से होकर गुजरती हैं. ये नदियां दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में रहने वाले करीब 200 करोड़ लोगों की जीवनरेखा हैं.

चीन की विस्तारवादी नीति लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने से खारिज करती रही है. इसके साथ ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की मौजूदा स्थिति को भी नहीं मानता है.

जिसे भारत और चीन ने मान्यता दी थी. चीन भविष्य में तिब्बत से निकलने वाली नदियों के पानी पर नियंत्रण स्थापित कर अपने पड़ोसी देश के खिलाफ ‘जल युद्ध’ छेड़ सकता है.

ऐतिहासिक नजरिए से तिब्बत को उपनिवेश बनाने के पीछे चीन के शासकों का एकमात्र मकसद था, अपने राज्य के लिए एक बफर स्टेट तैयार करना. 20वीं सदी में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा बलपूर्वक तिब्बत पर कब्जा करने को उसकी विस्तारवादी नीति के तौर पर देखा जाता है.

तिब्बत पर जबरदस्ती कब्जा जमाने के साथ चीन सीधे भारत, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान के साथ अपने क्षेत्रीय संपर्क स्थापित कर सकता है. इतना ही नहीं, वह भविष्य में इन देशों के इलाकों पर भी अपना दावा ठोकने की कोशिश कर सकता है.

अपने संस्थापक माओ के समय से ही चीन नेपाल, भूटान और भारतीय क्षेत्र के लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा मानता रहा है और इन इलाकों को वह चीनी क्षेत्र मानता है.