इन संस्थानों पर अपना कब्जा जमाता जा रहा चीन, अमेरिका निकला …

भारत के पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे अपने एक लेख में तर्क दिया गया है कि जिस तरह डब्ल्यूएचओ जैसे संगठनों से अमेरिका अपना स्थान छोड़ रहा है, तो इसका मतलब कि वह चीन के हाथों में खेल रहा है, यानी यह चीन के लिए ही अवसर है।

पिछले हफ्ते, अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ अपने संबंधों को समाप्त कर दिया। अपनी इस कार्रवाई को सही ठहराते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तर्क दिया कि डब्लूएचओ कोरोनावायरस महामारी पर बीजिंग को जिम्मेदार ठहराने में विफल रहा है, क्योंकि इस पर सारा नियंत्रण चीन का है।

ट्रंप ने कहा कि वाशिंगटन अन्य निकायों को धन पुनर्निर्देशित करेगा और अपने फैसले पर तभी पुनर्विचार करेगा, जब संगठन अगले एक महीने में महत्वपूर्ण सुधार कर लेगा। डब्ल्यूएचओ की फंडिंग के लिए अमेरिका सबसे बड़ा स्रोत है और इसके निकलने से संगठन के कमजोर होने की संभावना है।

इस कदम से यूरोपीय संघ में खलबली मच गई, जिसने ट्रंप को कोरोनावायरस महामारी के कारण चल रहे संकट के मद्देनजर अपने कदम पर पुनर्विचार करने की अपील की।

गोखले ने लेख में कहा है कि अगर अमेरिका लड़खड़ाता है और दुनिया संकट में पड़ती है तो यह शी जिनपिंग के शासन को ही सूट करता है (फायदा पहुंचाता है)। उन्होंने कहा, क्योंकि यह चीन को डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को संभालने का अवसर प्रदान करता है।

एक तरफ दुनिया अभी भी कोरोनावायरस महामारी से जूझ रही है, जिसकी उत्पत्ति चीन के वुहान शहर से हुई थी, वहीं दूसरी ओर चीन तेजी से अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों पर अपना कब्जा जमाता जा रहा है।

गोखले ने लिखा कि चीन अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए एक भयंकर लड़ाई के बीच है। उन्होंने कहा कि महामारी को लेकर चीन की भूमिका और हांगकांग पर नियंत्रण संबंधी उसके कदमों को लेकर चीनी अधिकारी फायरफाइटिंग मोड में हैं।