अमेरिका ने किया ये बड़ा कारनामा, ईरान के…किया कब्जा

करीब चालीस वर्ष से ईरान  अमेरिका के बीच चली आ रही विवाद पर अब युद्ध का शुरुआत होने की संभावना पर आकर गहरा गई है.
इस्लामिक क्रांति से ईरान में शाह युग का अंत होते ही अमेरिका का ईरान के ऑयल कारोबार पर नियंत्रण छिटकते ही इस विवाद का आगाज हो गया था.

जाहिर है तब से अब तक करीब एक दशक तक चले ईरान-इराक युद्ध  कुवैत पर इराकी हमले से गुजरते हुए अपने ही शक्तिशाली बनाए हुए इराकी शासक सद्दाम हुसैन के खात्मे  वहां कठपुतली सरकार कायम करने के अमेरिकी पैंतरों के बावजूद ईरान अमेरिका के आगे चार दशक में कभी झुका नहीं.

भारत के लिए चिंता का सबब 
ईरान  अमेरिका की विवाद में एक बात एकदम नयी यह है कि इराक की वर्तमान सरकार ने अमेरिकी दखल के विरूद्ध खुला विद्रोह छेड़ दिया है. इराकी संसद ने अमेरिका से इराक पूरी तरह छोड़ने का प्रस्ताव पारित कर पहली बार यह जता दिया है कि अमेरिका का पश्चिम एशिया में आपस में लड़ाने  डराने का खेल अब उस तरफ जा रहा है, जिसमें इस ऑयल संपन्न इलाके के परस्पर विरोधियों को एकजुट भी कर सकता है. समूचा मध्य एशिया  उसके आसपास के देश जिनमें हिंदुस्तान  पाक  चाइना तक शामिल हैं, इस तनाव के चरम से अपने अपने स्तर पर चिंतित हैं.

हिंदुस्तान के संबंध ईरान से न केवल आर्थिक  कारोबारी स्तर पर बल्कि संतुलन के लिहाज से बहुत ज्यादा बेहतर रहे हैं. चाबहार पोर्ट के अतिरिक्त गैस पाइप लाइन  अन्य द्विपक्षीय करारों के चलते हिंदुस्तान को इस युद्ध संभावना से सर्वाधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

हिंदुस्तान के संबंध अमेरिका से भी बेहतर हैं, ऐसे में हिंदुस्तान को ईरान  अमेरिका से इस मौके पर संबंध बनाए रखने  संभावित युद्ध को टालने की प्रयास करना ही रास्ता है.

अमेरिका की एक गलती सभी पड़ेगी भारी 
इधर, बीते शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान युद्ध की आरंभ नहीं, युद्ध समाप्त करने के लिए ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को समाप्त किया गया है.‘ कितना भयावह है, इसकी सहज कल्पना की जा सकती.  दरअसल, ट्रम्प ने देश के नाम संक्षिप्त संबोधन में बोला कि ‘आतंक ख़त्म हो गया है  हम सुकून से हैं.‘ ट्रम्प मानने को तैयार नहीं हैं कि सुलेमानी की जान लेने के बाद मध्य पूर्व में एक लंबी लड़ाई छिड़ सकती है.

सुलेमानी का खाड़ी में आतंक था. यमन में हौथी विद्रोही हों अथवा लेबनान में हेजबुल्ला. यह सुलेमानी ही था, जिसके नेतृत्व में ईरान ने इराक  सीरिया के एक हिस्से को इस्लामिक स्टेट मिलिटेंट से छुड़ाकर अपने कब्जे में ले लिया था.

अब ईरान, यमन, लेबनान  अफ़ग़ानिस्तान में सुलेमानी की मृत्यु पर हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं. ईरान के सुप्रीम लीडर आयातुल्ला खमेनी ने बदले की कार्रवाई के साफ इशारा दिए हैं. सुलेमानी की बेटियों ने खमेनी से पूछा कि कौन बदला लेगा, इस पर उनका जबाव था- हम सब यानी पूरा ईरान.
पूरी संसार ने सुलेमानी के जनाजे में खमेनी  हसन रोहानी के आंसू देखे हैं. इराक में अमेरिकी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी हालांकि ईरान ने नहीं ली है, लेकिन अमेरिकी ने इसे ईरानी हमले की ही तरह लिया है.

अमेरिका के विरूद्ध अन्य राष्ट्रों में भी छिटपुट हमले हुए हैं. इराकी संसद ने अमेरिकी सेना को अपने यहां से चले जाने को बोला है. उधर, अमेरिकी में भी ट्रम्प विरोधी ट्रम्प की कार्रवाई के विरूद्ध सड़कों पर उतर आए हैं.

जाहिर है ट्रम्प यानी अमेरिकी फौजें पीछे हटनी वाली नहीं हैं  न ही ईरानी सुलेमानी की मृत्यु को सरलता से भुला सकेगा न ही वह अमेरिकी को माफ ही करने वाला है. साफ है कि यह लड़ाई लंबी चलती है तो ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ खाड़ी से हिंदुस्तान पहुंचने वाली कच्चे ऑयल  गैस की कुल खपत की 84 प्रतिशत आपूर्ति प्रभावित हो सकती है.