अफगानिस्तान मे तालिबान ने किया नई सरकार का ऐलान , प्रधानमंत्री बने ये…

अमीर खान मुत्ताकी जिसे विदेश मंत्री बनाया गया है उसने पहले तालिबान शासन के दौरान सूचना और संस्कृति मंत्री के रूप में काम किया था. 1996 और 2001 के बीच तालिबान शासन के दौरान संयुक्त राष्ट्र के लीडरशिप वाली बातचीत में तालिबान लीडर के रूप में काम किया था. मुत्ताकी बरादर के नेतृत्व वाली दोहा समूह के सदस्यों में से एक था.

खलील हक्कानी शरणार्थी मामलों का नया मंत्री है. ये विशेष रूप से एक ग्लोबल आतंकवादी है जिसका अल कायदा से गहरा संबंध है. ये सिराजुद्दीन का चाचा और जलालुद्दीन का भाई हैं. खलील ने अल कायदा की सेना की सहायता की खूब मदद की है और उसकी ओर से काम भी किया है.

एफबीआई के अनुसार इसने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या करने की भी कोशिश की. जनवरी 2008 में काबुल के एक होटल पर हुए हमले में भी इसका हाथ था. इतना ही नहीं है, ये 2009-10 में कई भारत विरोधी हमले भी कर चुका है. मंत्री के रूप में सिराजुद्दीन हक्कानी एक महत्वपूर्ण संकेत है कि पाकिस्तान की आईएसआई ने कैबिनेट को चुना है.

तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री बनाया गया है. तालिबान में अखुनजादा के बाद मुल्ला मोहम्मद याकूब को नंबर 2 माना जाता है. अखुनजादा ने पहले इसे शक्तिशाली तालिबान मिलिट्री कमिशन का चीफ अपॉइंट किया था.

वैसे ये भी 2016 में अख्तर मंसूर की मौत के बाद तालिबान का लीडर बनना चाहता था पर युद्ध के अनुभव की कमी और कम उम्र होने के कारण ऐसा नहीं हो सका.

ये 2019 से कतर में तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस के चीफ के रूप में काम कर रहा था. मार्च 2020 में इसने सीधे डोनाल्ड ट्रम्प के साथ टेलीफोन पर बातचीत की थी. इसके बाद यह किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत करने वाला पहला तालिबानी नेता बना.

हक्कानी नेटवर्क के चीफ और सरदार जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने का शक है. ये एक ग्लोबल टेररिस्ट है जिसपर अमेरिकी विदेश विभाग ने 5 मिलियन अमरीकी डालर (36.78 करोड़ रूपये) तक का इनाम रखा था. ये काबुल में 2008 में भारतीय दूतावास पर हुए आतंकी हमले के लिए भी जिम्मेदार है.

नए प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल हैं और 30 ऑरिजिनल तालिबानियों में से एक है. इसने तालिबान के लिए फैसले लेने वाली कट्टर संस्था रहबरी शूरा के लिए 20 साल तक काम किया और तालिबान के वर्तमान चीफ लीडर मुल्ला हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा का करीबी है.

1996 से 2001 तक अफगानिस्तान की पिछली सरकार में ये विदेश मंत्री और डिप्टी पीएम था और कंधार का राज्यपाल भी रह चुका है. इतना पाकिस्तान प्रेम इसी बात से जाहिर है कि ये पाकिस्तान के कई मदरसों में पढ़ाई कर चुका है.

मुल्ला हसन के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुला बरादर को डिप्टी पीएम चुना गया है. मुल्ला बरादर 1994 में तालिबान का को-फाउंडर था. इससे पहले ऐसी संभावनाएं जताई जा रही थी कि मुल्ला बरादर ही अफगानिस्तान का नया प्रधानमंत्री हो सकता है लेकिन आईएसआई चीफ के दखल के बाद इसे डिप्टी पीएम बनाया गया.

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) ने सरकार चलाने के लिए अपनी अंतरिम कैबिनेट की घोषणा कर दी है. तालिबान की नई कैबिनेट को देखकर ऐसा लगता है कि अब आतंकवादियों के सुनहरे दिन लौट आए हैं. प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री तक टॉप आतंकवादी हैं.

खुद मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद जो नई तालिबान सरकार में प्रधानमंत्री है, वो यूनाइटेड नेशन्स की आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल है. 2001 में अफगानिस्तान की पिछली सरकार में डिप्टी पीएम रहते हुए, बामियान में बुद्ध की पहाड़ों में बनी मूर्तियों के विनाश का आदेश देने वाला भी यही शख्स था.

इसके अलावा भारत में के दुश्मन सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री चुना गया है. ये हक्कानी नेटवर्क का मुखिया है जो 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार है, साथ ही 2009-10 में भारत विरोधी कई हमले कर चुका है.

तालिबान के नए कैबिनेट पर पाकिस्तान कि छाप साफ नजर आती है. पाकिस्तान तालिबान को कठपुतली बनाने में कामयाब होता नजर आ रहा है. कंधार स्थित तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को कैबिनेट में ज्यादा तवज्जो मिली है जबकि दोहा स्थित तालिबान, जो भारत से संपर्क में था उसे किनारे करने की कोशिश हुई है. 33 नए कैबिनेट मंत्रियों में से कम से कम 20 कंधार आधारित तालिबान से हैं.