तालिबानियों ने अफगानिस्तान सरकार में मौजूद सेना के जवानों को दिया ये ऑफर, पाकिस्तान को लगा झटका

तालिबान प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने एक हफ्ते पहले कहा था कि तालिबान पाकिस्तान को अपना दूसरा घर मानता है और अफगानिस्तान की धरती पर ऐसी किसी भी गतिविधि की इजाजत नहीं देगा जो पाकिस्तान के हितों के खिलाफ हो।

 

हालांकि, मुजाहिद ने यह भी कहा था कि हम अपनी सरजमीं को किसी मुल्क के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करने देंगे। भारत और पाकिस्तान को चाहिए वे अपने द्विपक्षीय मामले सुलझाएं।

दूसरी और प्रमुख वजह यह है कि जिन अफगानी सेना के जवानों और सैनिकों ने अलग-अलग इलाकों में रहकर नाटो सेनाओं के साथ मिलकर काम किया है, उन्हें अमेरिकी सेना द्वारा दिए गए सैन्य उपकरणों और गोला बारूद समेत तमाम तकनीक के बारे में पूरी जानकारी है। बहुत सारे तकनीकी सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल तालिबानी अभी भी नहीं कर पा रहे हैं।

अफगानिस्तान की अलग-अलग बटालियन और अलग-अलग कोर में काम करने वाले सैनिक और अधिकारी अगर तालिबान के साथ मिलते हैं तो उपयोग में न आने वाले बहुत से तकनीकी सैन्य उपकरण भी तालिबानियों के काम आ सकेंगे।

ऐसे में अमेरिकी सेना के साथ काम करने वाले अफगानी सैनिकों को तालिबान के साथ मिलकर काम करने के ऑफर को चीन और पाकिस्तान अलग-अलग नजरिए से देखने लगा है।

मध्य एशिया के मामलों की जानकार और दिल्ली विश्वविद्यालय की इतिहासविद प्रोफेसर कुसुम जौहरी का कहना है कि तालिबान का यह ऑफर यूं ही नहीं आया। उनका कहना है कि तालिबानियों ने बहुत सोच समझकर अफगान सेना में काम कर चुके सैनिकों और जवानों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति बनाई है।

वह कहती हैं इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि तालिबान पूरी दुनिया के लोगों को यह मैसेज देना चाहता है कि वह सबको साथ लेकर चलने की शुरुआत करने जा रहा है।

 अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुए तालिबानियों ने अफगानी सेना को एक ऐसा ऑफर दिया है जिससे न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि चीन को भी झटका लगा है।

दरअसल तालिबानियों ने अफगानिस्तान सरकार में मौजूद सेना के जवानों और अधिकारियों को अपने साथ मिलकर काम करने के लिए एक ऑफर दिया है। तालिबानियों का यह ऑफर इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि 2004 से लेकर इस साल हुए तख्तापलट तक अफगानिस्तान की सेना की ट्रेनिंग ज्यादातर अमेरिकी सैनिकों की देखरेख में हुई है।