पाकिस्तानी हिन्दुओ ने बयां किया ये दर्द, नागरिकता संशोधन विधेयक से जताई ऐसी उम्मीद

जिस दिन भारतीय संसद ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का ध्यान किसी और मुद्दे पर था. वो मुद्दा था लाहौर में वकीलों और डॉक्टरों के बीच हुई झड़प.

इस झगड़े के दौरान लाहौर के सबसे बड़े हृदयरोग अस्पताल पंजाब इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्डियोलॉजी में सैकड़ों वकीलों ने डॉक्टरों पर हमला कर दिया था जिसके कारण तीन मरीज़ों की मौत हो गई थी.

एक दिन बाद जब पाकिस्तान की सरकार ने भारत के नागरिगता संशोधन विधेयक पर अपनी टिप्पणी दी, तो प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्विटर पर लिखा की ये विधेयक अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के सारे मानदंडों का उल्लंघन करता है.

इमरान ख़ान ने विधेयक के लोकसभा से पारित होने के बाद ट्विटर पर लिखा था, “हम भारत के इस विधेयक की सख़्त निंदा करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के सारे मानदंडों और पाकिस्तान सरकार के साथ द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करता है. ये आरएसएस के हिंदू राष्ट्र की योजना का हिस्सा है जिसे फ़ासीवादी मोदी सरकार बढ़ा रही है.”

तब कुछ कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक समुदायों की स्थिति पर ध्यान आकर्षित करके कहा था की पाकिस्तान पहले अपने घर में रह रहे अल्पसंख्यकों के दमन पर कुछ करे, बजाय भारत से ये पूछने के कि इस विधेयक में मुसलमानों को बाहर क्यों रखा गया है.

इमरान ख़ान के नागरिकता संशोधन विधेयक के भारतीय संसद में पारित होने वाले ट्वीट के जवाब में राजनीतिक विशेषज्ञ राजा अता-उल मन्नान ने लिखा, “और पाकिस्तान आपके नेतृत्व में कहाँ जा रहा है? आपकी सरकार में तो अटक में एक महिला सरकारी कर्मचारी के साथ स्कूल में भीड़ दुर्व्यवहार करती है और पुलिस कमिश्नर आदमियों से भरे कमरे में सब देखता रहता है. उस महिला का सिर्फ़ एक ही अपराध होता है कि वो अहमदियों को अहमदी और पाकिस्तानी कह देती है! किसी को इस पर कोई चिंता है?”

राजा अता-उल मन्नान उस वीडियो की बात कर रहे हैं जो कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें एक महिला भीड़ में एक स्टूडेंट से परेशान होने के बाद अपनी धार्मिक आस्था समझाती दिखती है और सरकारी कर्मचारियों से माफ़ी मांगती भी नज़र आती है.

वीडियो में कर्मचारी पाकिस्तान में अहमदियों समेत बाकी समुदायों के बीच समावेश और एकता की बात कर रही है.

क़रीब चार दशक पहले अहमदियों को पाकिस्तान में एक संवैधानिक संशोधन के बाद ग़ैर-मुसलमान घोषित कर दिया गया था और तबसे वे अपनी धार्मिक आस्था को लेकर उत्पीड़न सहते आये हैं.

‘हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में ले जाने वाला विधेयक’

इसके कुछ घंटों बाद ही पाकिस्तान के विदेश कार्यालय से प्रतिक्रिया आई जिसमें मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फ़ैसल ने अपनी साप्ताहिक ब्रीफ़िंग में कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक एक चरमपंथी हिंदुत्व विचारधारा का विषाक्त मिश्रण है.

उन्होंने कहा, “ये विधेयक भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने की दिशा में एक और बड़ा क़दम है जिसे राइट विंग हिन्दू नेता कई दशकों से लगातार अनुसरण में लाना चाहते रहे हैं. ”

पाकिस्तानी मीडिया में इस विधेयक को भारतीय संसद में पारित होने तक ख़ूब कवरेज मिली है. मुख्यधारा के टीवी एंकरों ने बीजेपी की सत्ता को जम के कोसा है और इस विधेयक को भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ बताते हुए पक्षपाती बताया है.

और आम पाकिस्तानी, सरकार और मीडिया से इस पर सहमत दिखा.

एक कामकाजी माँ तमन्ना जाफ़री ने कहा, “ये बेहद दुखद है, इससे भारत की धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को ठेस पहुंचेगी. मोदी के भारत से तो अब साबित होता है कि अंग्रेज़ों की विभाजन वाली टू नेशन थ्योरी सही थी.”

वो आगे लिखती हैं कि इस विधेयक का पास होना पाकिस्तान के लिए एक बड़ा सबक भी है. “किसी भी देश को अपने सभी समुदायों की रक्षा करनी चाहिए बिना भेदभाव किए, क्योंकि जब देश भेदभाव करके किसी एक समुदाय को टारगेट करने लगते हैं तो इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि ख़राब होती है.”

इस्लामाबाद में रहने वाले एक कारोबारी सरमद राजा कहते हैं, “भारत ने फिर से एक बार ये साबित कर दिया है कि वो एक लोकतंत्र नहीं रह गए हैं. ये एक धर्मतंत्र बनकर बिखरने की ओर बढ़ रहे हैं. ”

पाकिस्तान के कराची में दिवाली का उत्सव मनाती महिला
पाकिस्तानी हिन्दुओं की प्रतिक्रियाएं

पाकिस्तान में लोगों की प्रतिक्रियाएं ज़्यादातर मुसलमानों के इस विधेयक में शामिल न किये जाने पर हैं पर वहाँ के हिन्दू इस विधेयक पर क्या कहते हैं?

पाकिस्तान के हिंदू परिवारों की पहले से भारत आने की ख़बरें आती रही हैं. जिनके अलग-अलग कारण रहे हैं. लगभग एक दशक पहले कुछ हिन्दू परिवारों ने फ़िरौती के लिए व्यापारियों के अपहरण में वृद्धि के चलते भारत आने का निर्णय किया. तो कुछ ने मीडिया में हिंदू लड़कियों के जबरन धर्मांतरण की घटनाओं के बाद पाकिस्तान छोड़ दिया.

हिन्दू पंचायत के अध्यक्ष प्रीतम दास कहते हैं, “हालांकि पाकिस्तान के हिन्दू समुदाय के लोग इस विधेयक का खंडन कर रहे हैं लेकिन इस विधेयक ने पाकिस्तानी हिन्दुओं के लिए भारत जाने के लिए द्वार भी खोल दिए हैं. ”

प्रीतम दास कहते हैं, “जो लोग पाकिस्तान में कुछ दिक्कतों का सामना कर रहे थे, ये उनके लिए तो सकारात्मक क़दम है. ”

अमर गुरीरो एक पाकिस्तानी पत्रकार हैं जो सिंध के थारपारकर ज़िले से ताल्लुक़ रखते हैं. सिंध पाकिस्तान का वो प्रांत है जहां देश के 50 लाख से ज़्यादा हिन्दू रहते हैं. गुरीरो हिन्दू समुदाय को कवर करते रहे हैं.

अमर कहते हैं, “पाकिस्तानी हिन्दू अपनी सिंधी पहचान पर बड़ा फ़ख़्र करते हैं और ये धारणा कि वे भारत जाना चाहते हैं काफ़ी हद तक ग़लत है. पाकिस्तानी हिन्दू, अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन या पश्चिम की ओर बेहतर संभावनाओं के लिए पलायन कर रहे हैं, और भारत उनका लक्ष्य देश है.”

अमर कहते हैं, “अधिकांश पाकिस्तानी हिंदू निचली जाति के हैं, जिनकी भारत जाने की कोई इच्छा नहीं है. जो थोड़े बहुत परिवार भारत गए भी, वे नौकरी के कम अवसर और कठिनाइयों के चलते पाकिस्तान वापस लौट आए. ये सिर्फ़ उच्च श्रेणी के कुछ हिन्दू हैं जो अपने परिवार से मिलने और काम के लिए भारत जाते हैं. मुझे नहीं लगता इस विधेयक के बाद कोई बड़े पैमाने पर स्थानान्तरण होने वाला है.”

अमर का ये भी मानना है कि सिंधी इसलिए भी घर वापसी करते हैं क्योंकि दोनों देशों के सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण में बहुत अंतर है. “ये लोग सिंध और उसकी परम्पराओं से जुड़े हैं. इसलिए हिन्दू होने से पहले ये ख़ुद को सिंधी मानते हैं. इसलिए इनके मुताबिक़ ये भारत में नहीं रह पाएंगे. ”

अमर बताते हैं कि अतीत में कितने हिन्दू पाकिस्तान छोड़कर भारत गए हैं, इसके प्रमाणित आंकड़े हैं, लेकिन उनके मुताबिक़ भारतीय सरकार इन आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर बताती आयी है.