भारतीय संसद से पारित होने के बाद नागरिकता संशोधन कानून के विरूद्ध बड़े पैमाने पर हो रहा विरोध पीएम नरेंद्र मोदी के लिए 2014 में पहली बार ऑफिस संभालने के बाद की सबसे बड़ी चुनौती कही जा सकती है।
सियासी विशेषज्ञों से लेकर खुद बीजेपी के कुछ नेता तक भी मान रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार इस मामले पर जनता के ‘मन की बात’ नहीं भांप सकी। ज्यादातर लोगों ने नए कानून को मुस्लिम विरोधी माना व प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के इस गलत कदम ने हिंदू राष्ट्रवादी दल को लोगों के गुस्से की आग में झोंक दिया।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि बीजेपी सांसद व केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान भी मानते हैं कि जनता के मूड का अंदाजा नहीं लगाया जा सका। बालियान के मुताबिक, मैं हकीकत में विरोध को नहीं देख पाया। मै ही नहीं, अन्य बीजेपी सांसद भी इस तरह के गुस्से को भांपने में असफल रहे अपने बड़े संसदीय बहुमत को इस विरोध से कोई खतरा नहीं होने के बावजूद 69 वर्षीय मोदी की जनता की नब्ज पर पकड़ रखने वाले मास्टर रणनीतिकार की इमेज को भी इससे धक्का पहुंचा है। साथ ही देश में 80 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू होने के बावजूद मोदी का मजबूत प्रो-हिंदू आधार भी टूटा है।
इस मुद्दे को लेकर विशेषज्ञों का बोलना है कि आर्थिक मंदी व घटती नौकरियों के मामले का हल निकालने के बजाय अपने प्रमुख एजेंडे का पालन करने के चलते नागरिकता कानून के विरूद्ध सरकार के विरूद्ध गुस्सा फूटा। तीन अन्य बीजेपी सांसदों व दो केंद्रीय मंत्रियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, वे पार्टी समर्थकों को सभी क्षेत्रों में नागरिकता कानून को लेकर सामुदायिक चर्चाओं को प्रारम्भ करने व असंतोष दूर करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इन सभी ने भी बोला कि वे मुस्लिम समुदाय की तरफ से थोड़ा विरोध जताये जाने को लेकर तैयार थे, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर अधिकांश अहम शहरों को करीब 2 हफ्ते तक हिला देने वाले विरोध का अनुमान नहीं लगा रहे थे। एक केंद्रीय मंत्री ने सहयोगियों व विपक्षी दलों से चर्चा की कमी का स्पष्ट हवाला देते हुए कहा, मेरा मानना है कि कानून की मंजूरी के पीछे के सियासी गणित पर ध्यान नहीं दिया गया।