हिंदुस्तान जैसा विकासशील देश जिसकी आर्थिक, सामाजिक व सियासी स्थितियाँ बहुत विकट हैं। मगर इन सबके बावजूद हिंदुस्तान ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सत्तर के दशक में जिस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की थी वह आज अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, जापान जैसे राष्ट्रों को कड़ी टक्कर दे रहा है। कम संसाधनों में भी उसने चंद्रयान-1 को चांद पर भेजकर इतिहास रच दिया। बेहद कम लागत में तथा पहली ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंचने में सफल होने वाला हिंदुस्तान पहला देश बना। एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट का प्रक्षेपण कर हिंदुस्तान ने संसार के अंतरिक्ष मार्केट में लंबी छलांग लगाई।यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना व उन्हें सकुशल भूमि पर वापस लाना बेहद चुनौतीपूर्ण है (प्रतीकात्मक फोटो)
चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता से रोवर प्रज्ञान के जरिए चांद की सतह की जानकारी इकट्ठा करने में बेशक बाधा आई, मगर ऑर्बिटर लगातार चंद्रमा से जुड़ी जरूरी जानकारियाँ पृथ्वी पर भेज रहा है। इसरो ने साल-दर-साल नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। लेकिन खुद के अंतरिक्षयान से किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
अभी तक रूस, अमेरिका व चाइना ने ही मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने में सफलता पाई है। हालांकि अगर सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो हिंदुस्तान भी 2022 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले राष्ट्रों की बिरादरी में शामिल हो जाएगा। दुनिया की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की उपलब्धि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) को हासिल है। उसने 12 अप्रैल 1961 को ‘वस्तोक-1’ नामक अंतरिक्ष यान से यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजकर पूरी संसार को चकित कर दिया था।
इसके बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों का सिलसिला बढ़ा व बाद में अमेरिका व चाइना ने भी इस करिश्मे को अंजाम दिया। अंतरिक्ष में मनुष्य को भेजना कितना मुश्किल उद्यम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी बार चाइना ने 2003 में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजा था। तब से लेकर अब तक अन्य कोई भी देश मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान नहीं भर सका है। अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना व उन्हें सकुशल भूमि पर वापस लाना बेहद चुनौतीपूर्ण व दुरूह काम है। स्पष्ट है, यदि इस अभियान में इसरो पास हो जाता है, तो वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वदेशी तकनीकी शक्ति का लोहा पूरी संसार को मनवा सकता है।