उत्तराखंड की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता की काफी अहम भूमिका, जानिए कैसे…

उत्तराखंड की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता काफी अहम भूमिका निभाते हैं। राज्य की एक तिहाई से अधिक आबादी ठाकुर है। 2017 की तुलना में इस बार इन दोनों जातियों ने भाजपा को जमकर वोट दिया। लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव के बाद के सर्वेक्षण के मुताबिक, ठाकुर मतदाताओं ने भाजपा को सात प्रतिशत अधिक वोट दिया।

ब्राह्मणों ने भी पार्टी को लाभ पहुंचाया। पिछले चुनाव के मुकाबले ब्राह्मणों ने भाजपा को 11 प्रतिशत अधिक वोट दिया। पांच में से दो उच्च जाति के हिंदुओं ने भाजपा का समर्थन किया, जबकि केवल एक चौथाई ने कांग्रेस का साथ दिया। हालांकि, कांग्रेस ने काफी हद तक दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। 2017 की तुलना में दलित मतदाताओं ने 15 फीसदी अधिक वोट किया।

जहां तक बसपा का सवाल है उत्तराखंड में उसके दलित आधार में गिरावट यूपी की तुलना में अधिक तेजी से हुई है। बसपा का 2012 में दलितों के बीच 39% वोट शेयर था जो अब घटकर 16% पर आ गया है। उत्तराखंड में जाति विभाजन को कुमाऊंनी-गढ़वाली-मैदानी मुकाबलों के साथ-साथ बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।

कुमाऊं की पहाडियों में ब्राह्मणों और ठाकुरों दोनों में से आधे से अधिक ने भाजपा को वोट दिया। गढ़वाल में जहां पार्टी ने पारंपरिक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया, भाजपा को तीन-चौथाई से अधिक ब्राह्मणों और दो-तिहाई ठाकुरों का समर्थन प्राप्त हुआ। कांग्रेस ने गढ़वाल में कुमाऊं में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया, उसे ब्राह्मणों की तुलना में ठाकुरों के बीच बेहतर समर्थन मिला। दलितों के अलावा, राज्य में धार्मिक अल्पसंख्यकों ने कांग्रेस का समर्थन किया है।