पहली बार महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर होगा ऐसा, बदल जाएगा भारत का इतिहास

मुझे तो गांधी, तुलसीदास के उन दोहों की तरह लगते हैं जो अपढ़-गंवार और देहाती कहे जाने वाले हर के जुबान पर अनायास ही फूट पड़ते हैं।

 

जिनकी दिनचर्या जीवन शैली देख गांधीजी ने कोट-पैंट उतार धोती अपना ली थी। तुलसी के दोहों की तरह पवित्र, साक्ष्य-उद्धरण बनकर हर जीवन में समाया हुआ।

आज ही के दिन गांधीजी ने तीन गोलियां खाईं थी सीने पर और मारने वाले ने झुककर पैर छूते मारा था। मतलब यह कि इस हिंसा ने उस अहिंसा के पुजारी के आगे सबसे पहले समर्पण कर दिया था। यह एक प्रतीक है कि अहिंसा ही जीवन की राह है। हिंसा चाहे बल से हो, धन से हो, या फिर मन से। बापू का अंतिम तीन शब्द- हे राम, उन तीन गोलियों को स्वीकार कर अहिंसा की महत्ता को स्थापित करता है।

इसी संदर्भ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का संस्कृति के चार अध्याय में बापू पर लिखा -भूमि का स्वर्गीकरणः महात्मा गांधी का प्रयोग, याद आ गया।

जिसमें वे लिखते हैं- महात्मा गांधी ने भारतीय संस्कृति पर इतनी अधिक दिशाओं में प्रभाव डाला है कि उनके समस्त अवदान का सम्यक मूल्य निर्धारित करना अभी संभव नहीं दीखता। खान-पान, रहन-सहन, भाव-विचार, भाषा और शैली, परिच्छद और परिधान, दर्शन और सामाजिक व्यवहार एवं धर्म-कर्म, राष्ट्रीयता और अंतरराष्ट्रीयता भारत में आज जो भी आचार या विचार प्रचलित हैं, उनमें से प्रत्यक पर कहीं न कहीं गांधीजी की छाप है।

यहां तक कि उनके आलोचकों और विरोधियों में भी ऐसे अनेक लोग हैं, जिनकी पोशाक नहीं तो खान-पान में, विचार नहीं तो सामाजिक आचार में, महात्मा गांधी का प्रभाव मौजूद है।

महात्मा गांधी भारतीय जनजीवन में आलू की तरह उपलब्ध हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व महाधिवक्ता, गांधीवादी चिंतक और लेखक कनक तिवारी का फेसबुक पर पोस्ट- बापू ! तुम अमर हो की, यह पंक्तियां बयां कर देती हैं कि गांधीजी हर भारतीय के जनमानस में कितने रचे बसे हुए हैं। कोई कितना भी प्रयास करे उसे अलग नहीं किया जा सकता।