इस दिन मनाया जाएगा अहोई अष्टमी का पर्व, जाने मूहूर्त व पूजन विधि

अहोई अष्टमी का पर्व इस साल सर्वार्थ सिद्धि योग में संपन्न होगा. अहोई अष्टमी पर्व हिंदू पंचांग अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है जिसे मुख्य रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों के सुख के लिए किया जाता है.

उत्तर भारत समेत महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ दक्षिणी राज्यों में इस पर्व को विशेष रुप से मनाया जाता है. अहोई अष्टमी दिवाली पर्व से आठ दिन पहले और करवा चौथ के त्योहार के चार दिन बाद मनाई मनाया जाता है.

अहोई अष्टमी 2021 28 अक्टूबर गुरुवार को मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग में अहोई अष्टमी पूजा के समय में सितारों और चंद्रोदय का समय देखा जाता है.अष्टमी तिथि का समय: 28 अक्टूबर, दोपहर 12:49 बजे से 29 अक्टूबर, दोपहर 14:09 तक होगा. इस दिन चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होगा तथा पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्रों की शुभ स्थिति भी प्राप्त होगी. साध्य योग का निर्माण भी इस दिन होगा.

करवा चौथकी तरह ही अहोई अष्टमी का उत्सव पूरे उत्तर भारत में बहुत व्यापक रुप से मनाया जाता है. यह दिन देवी अहोई व अहोई माता की पूजा के लिए समर्पित होता है. अहोई अष्टमी व्रत माताओं द्वारा ही मनाया जाता है, यह व्रत बच्चों की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखा जाता है और साथ ही अधिक बच्चों का आशीर्वाद पाने के लिए भी रखा जाता है.

अहोई अष्टमी पर, यह व्रत मुख्य रुप से पुत्र संतान हेतु रखा जाता रहा है लेकिन आज के समय में संतान कन्या हो य अपुत्र सभी हेतु किया जाने लगा है. माताएं अपने बच्चे के सुख ओर दीर्घायु के लिए पूरे दिन कठोर उपवास रखती है. वे बिना पानी की एक बूंद पिए भी दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं तथा गोधूलि समय के दौरान तारों को देखने के बाद व्रत पूजा पाठ होता है. कुछ स्थानों पर, अहोई अष्टमी व्रत को चंद्रमा को देखने के बाद अपना खोला जाता है व संपन्न होता है.

महिलाएं जल्दी उठकर स्नान कार्य पश्चात व्रत का संकल्प लेती हैं. दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाय अजाता है चित्र में ‘अष्ट कोष्टक’ या आठ कोने होते हैं इसके साथ ही ‘सेई व उसके बच्चों का चित्र भी बनाया जाता है. यदि चित्र नहीं बनाया जा सकता है तो अहोई अष्टमी के दिन बने बनाए हुए चित्र भी उपयोग किए जा सकते हैं.

पूजा स्थल पर करवा अर्थात मिट्टी का बर्तन,पानी से भरकर रखा जाता है. इस करवा की नोक को एक विशेष घास से बंद किया जाता है. पूजा की रस्मों के दौरान अहोई माता को घास का यह अंकुर भी चढ़ाया जाता है. अहोई अष्टमी की पूजा संध्या के समय यानी सूर्यास्त के बाद की जाती है. पूजा के लिए परिवार की सभी महिलाएं एक साथ आती हैं व अहोई माता व्रत कथा सुनी जाती है. कुछ भक्त चांदी से बनी अहोई का उपयोग भी करते हैं. पूजा के दौरान दूध, रोली और अक्षत के साथ इसकी पूजा की जाती है. विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है जिसमें पुरी, हलवा और पुआ शामिल होते हैं. इस भोग को देवी को अर्पित किया जाता है. इसके पश्चात किसी बुजुर्ग महिला या ब्राह्मण को भी दिया जाता है. अंत में ‘अहोई माता की आरती’ करके पूजा समाप्त की जाती है.

अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है. इस दिन पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ देवी अहोई की पूजा करते हैं.