विकास दुबे प्रकरण में आया ये नया मोड़ तेज़ हुई…पकड़ता जा रहा…

प्रयागराज में रहने वाले एक युवक संतोष शुक्ल एक इंटर कॉलेज में अध्यापक हैं. वो कहते हैं, “विकास दुबे अपराधी था, उसे मारने का न तो किसी ने विरोध किया और न ही किसी को अफ़सोस है. लेकिन जब उसने सरेंडर कर दिया था तो उसे न्यायिक प्रक्रिया से गुज़रने का मौक़ा तो देना ही चाहिए था. और उसे कोई मौक़ा न भी देते तो कोई बात नहीं. लेकिन छोटे बच्चों, महिलाओं और गांव के पांच अन्य ब्राह्मणों के एनकाउंटर का क्या औचित्य है?”

संतोष शुक्ल कहते हैं कि वो भारतीय जनता पार्टी के बचपन से ही समर्थक रहे हैं लेकिन इन तीन सालों में सरकार की कार्यप्रणाली से उन्हें काफ़ी मायूसी मिली है. संतोष शुक्ल यह बात कहने वाले अकेले नहीं हैं.

राजनीतिक दलों में इस नाराज़गी को भुनाने की कोशिश भी हो रही है. कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने बाक़ायदा ब्राह्मण चेतना परिषद नामक संस्था का गठन करके ब्राह्मणों के हित में आवाज़ उठाने का संकल्प कर लिया है. बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने राज्य सरकार से कोई ऐसा क़दम न उठाने की अपील की है जिससे कि ब्राह्मण समाज के लोग ख़ुद को भयभीत महसूस करें. जितिन प्रसाद ने मायावती के इस ट्वीट का “सम्मान करते हुए” उन्हें धन्यवाद दिया.

जितिन प्रसाद ब्राह्मणों की हत्याओं की एक सूची ट्वीट करते हुए सवाल पूछते हैं कि ‘उत्तर प्रदेश में इतनी ब्राह्मण हत्याओं का दोषी कौन’. हालांकि जितिन प्रसाद कहते हैं कि ब्राह्मण चेतना परिषद लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए है, इसे विकास दुबे या किसी दूसरे अपराधी के साथ न जोड़ा जाए.

कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे और उनके पांच साथियों के कथित एनकाउंटरों में मारे जाने की जांच के लिए सरकार ने एसआईटी और न्यायिक आयोग का गठन भले ही कर दिया है लेकिन मामला जातिगत राजनीति की रंगत पकड़ता जा रहा है.

मध्य प्रदेश के उज्जैन में विकास दुबे के आत्मसमर्पण और फिर अगले ही दिन कथित एनकाउंटर में हुई मौत के बाद न सिर्फ़ इस एनकाउंटर के तरीक़े, इसकी ज़रूरत और इसकी सच्चाई पर सवाल उठ रहे हैं बल्कि इस घटना के साथ विकास दुबे के पांच सहयोगियों की ‘एनकाउंटर’ में मौत को भी जातीय कोण से देखने की कोशिश हो रही है.

लेकिन बीजेपी से कांग्रेस में आए पूर्व सांसद डॉक्टर उदित राज ने अपने ट्विटर हैंडल पर यह लिखकर इस बहस को एक क़दम और आगे बढ़ा दिया कि यदि विकास दुबे की जगह कोई ठाकुर होता तो क्या ऐसा ही व्यवहार होता?

यही नहीं, कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णन तो इस मामले में राज्य सरकार पर काफ़ी हमलावर हैं और उन्होंने सीधे तौर पर राज्य सरकार को ‘ब्राह्मणों की हत्या करने वाली सरकार’ कह दिया.

बीजेपी नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी भले ही इस बात से इनकार कर रहे हों कि ब्राह्मणों में इस बात को लेकर कोई नाराज़गी है लेकिन बीजेपी के अंदर भी इस बात को लेकर न सिर्फ़ चर्चाएं हो रही हैं बल्कि चिंता भी जताई जा रही है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहते हैं कि विकास दुबे के मारे जाने से और ख़ासकर मारे जाने के तरीक़े से, ब्राह्मण समुदाय में उसे लेकर भारी सहानुभूति पैदा हुई है. उनका कहना था, “जब तक वह ज़िंदा था, किसी ने भी उसका बचाव नहीं किया, लेकिन जिस तरह से उसका एनकाउंटर किया गया, समुदाय के भीतर उसे लेकर आक्रोश है. हमारे नेता यदि इस मुद्दे को जल्द ही नहीं सुलझा पाए तो अगले विधानसभा चुनाव में यह हमारे ख़िलाफ़ जा सकता है.”

दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हिन्दूवादी का ठप्पा तो लगा ही है, साथ ही ठाकुरवादी होने के भी आरोप अक़्सर लगते रहे हैं, ख़ासकर जब से वो यूपी के मुख्यमंत्री बने हैं. जिस तरह से सोशल मीडिया पर विकास दुबे के एनकाउंटर के तरीक़े पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उसी तरह बहुत से यह कहकर मुख्यमंत्री की प्रशंसा कर रहे हैं कि ‘अपराधियों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए.’