सोमवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में कैबिनेट की बैठक हुई इस दौरान इस मैप को मंजूरी दी गई। इस नए मैप के मुताबिक, लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल में हैं।
जबकि दरअसल ये इलाके भारत का हिस्सा हैं। मैप जारी होने के बाद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने कहा कि लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी इलाके नेपाल में आते हैं और इन इलाकों को वापस पाने के लिए मजबूत कूटनीतिक कदम उठाए जाएंगे। नेपाल के सभी इलाकों को दिखाते हुए एक आधिकारिक मानचित्र जारी होगा।
गौरतलब है कि पिछले दिनों धारचूला से लिपुलेख तक नई सड़क का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उद्घाटन किया गया था। इस सड़क का नेपाल ने विरोध किया था।
इस सड़क से कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों की दूरी कम हो जाएगी। नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को तलब कर लिया था।
इसके जवाब में भारत ने अपनी स्थिति साफ करते हुए कह था कि ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हाल ही बनी सड़क पूरी तरह भारत के इलाके में हैं।
ग्यावली ने सोमवार को एक ट्वीट कर कहा कि कैबिनेट ने 7 प्रान्त, 77 जिलों और 753 स्थानीय निकायों वाले नेपाल का नक्शा प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेक और कालापानी भी होंगे।
नेपाल के इस व्यवहार के लिए भारत, चीन को जिम्मेदार मान रहा है। शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संकेत दिए थे नेपाल के लिपुलेख मुद्दा उठाने के पीछे कोई विदेशी ताकत हो सकती है।
जनरल नरवणे ने कहा था कि मुझे नहीं पता कि असल में वे किस लिए गुस्सा कर रहे हैं। पहले तो कभी समस्या नहीं हुई, किसी और के इशारे पर ये मुद्दे उठा रहे हों, यह एक संभावना है।
नेपाल की सरकार ने अपना नया नक्शा जारी किया है। पड़ोसी देश ने इस नक्शे में भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को भी शामिल कर दिया है।
नेपाल की इस हिमाकत के बाद अब ऐसा लग रहा है कि जैसे नेपाल ने चीन के इशारों पर काम करना शुरू कर दिया है। भारत ने 8 मई को उत्तराखंड के लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के लिए सड़क का उद्घाटन किया था। इस पर नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई थी।
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने कहा था कि वह एक इंच जमीन भारत को नहीं देंगे। नेपाल के इस कदम के बाद दोनों देशों के बीच गतिरोध बढ़ने की आशंका बढ़ गई है।