ब्याह के बाद की वो बारिश! पानी थम ही नहीं रहा था. मैंने सिर पर प्लास्टिक का टोपा-सा बनाया और टोकरी उठाए निकल पड़ी. ‘लैट्रिन’ साफ कर टोकरा सिर पर रखा. संभलकर चल रही थी लेकिन लैट्रिन सिर से होते हुए पूरे शरीर में बहती रही. एक के बाद एक 10 घरों का मैला (manual scavenging) उठाया. दोपहर तक मेरा खून भी बदबू से सन गया था. बजबजाती हुई बारिश उसके बाद हर साल आई.
मैला उठाने वाली की कहानी…
गुलाबी साड़ी में चौड़े पाड़ की मांग निकाले और चटकीली बिंदी सजाए लाली बाई बामनिया की तमाम उम्र ‘जागीरी’ संभालते बीती. वे कहती हैं- 12 बरस की थी जब शादी करके आई. दूसरे दिन मुझे काम पर जाना था. काम यानी घरों से मैला साफ करने. मैंने मना किया तो मरद बोला- ये हमारी जागीरी है. हमारी जायदाद. ये तो करना ही होगा.
पीहर में कभी ये काम नहीं देखा था, सब मजदूरी करते और खाते. यहां के कायदे दूसरे थे.
घर की दूसरी औरतें के साथ पहले दिन ‘टरेनिंग’ पर गई. सबके हाथों में एक-एक टोकरी, पुरानी चादर का एक मैला कपड़ा और घर की फूस. पहले घर में पहुंचे. हमारे घुसने के लिए अलग रास्ता था, संकरा-सांवला.जैसे उससे कोई आता-जाता नहीं हो. अब टरेनिंग शुरू हुई. लैट्रिन पर राख डालनी थी. पहला दिन था इसलिए मुझे हल्का काम मिला. मैंने आंखें मूंदी, सांस रोकी और राख छिड़कने लगी. तभी सास की आवाज आई- आंखें खोलकर डाल. अब तक आंखें भी खुल चुकी थीं, सांस भी और मुंह भी. लाली याद करती हैं- मैं आड़ी-टेढ़ी होते हुए लैट्रिन पर ही उल्टियां कर रही थी. पीठ पर सास के मुक्के सहते हुए.
उस दिन मेरी जल्दी छुट्टी हो गई. उल्टियों से बेहाल घर लौटी. सिर में तेज दर्द. मुंह खोलूं तो लैट्रिन की बदबू आए. आंखें बंद करूं तो टरेनिंग याद आए. उल्टी-बुखार की गोली खाकर पड़ रही. देर दोपहर सास-जिठानी लौटीं तो बलभर कुटाई हुई.
मैंने कहा- मैं ये काम नहीं करूंगी. वे बोले- शादी करके लाए हैं. तू नहीं करेगी तो कौन करेगा! मरद ने कहा- राजा के घर से आई है, जो इतने नखरे हैं! जो बोलें, वो कर.