लंबे इंतजार के बाद अयोध्या मुद्दे पर ‘सुप्रीम’ निर्णय का वक्त बस कुछ ही देर में आने वाला है. हालांकि इससे पहले अयोध्या टकराव पर बड़ा निर्णय 30 सितंबर 2010 को आया था.
उस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने 2.77 एकड़ की विवादित धरती को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था. मुस्लिमों, रामलला व निर्मोही अखाड़े के बीच यह जमीन बांटी गई थी. हालांकि पक्षकार इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हुए व इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 285 पन्नों के अपने निर्णय में कई अहम टिप्पणियां की. न्यायालय ने बोला कि यह जमीन एक ऐसा छोटा सा टुकड़ा है, जहां देवता भी पैर रखने से डरते हैं. यह टुकड़ा एक तरह से बारूदी सुरंग की तरह है, जिसे हमने साफ करने की प्रयास की है. जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान व जस्टिस धर्मवीर शर्मा की पीठ ने आगे कहा, ‘हमें ऐसा न करने की सलाह दी गई थी कि कहीं इस बारूद से आपके परखच्चे न उड़ जाएं. मगर ज़िंदगी में जोखिम लेने पड़ते हैं. हम वह निर्णय दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है.‘
न्यायालय ने अपने निर्णय में बोला था कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों, हिंदुओं व निर्मोही अखाड़े का संयुक्त मालिकाना हक है. इसके नक्शे को आयुक्त शिवशंकर लाल ने तैयार किया था. उन्हें न्यायालय ने ही नियुक्त किया था. न्यायालय के निर्णय के अनुसार तीन गुंबद वाले ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे वाला जगह हिंदुओं को मिला. यहीं रामलला की मूर्ति है. निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा व सीता रसोई सहित उसका भाग मिला. जिस जगह पर मुसलमान नमाज पढ़ते थे, इसलिए उन्हें जमीन का तीसरा भाग दिया गया.