सुप्रीम कोर्ट ने कहा-रेलवे की जरूरतें स्वीकार, प्रभावितों से हो मानवीय व्यवहार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के विकास के लिए भूमि सुरक्षित करने के लिए अधिकारियों को बेदखल करने से पहले प्रभावितों के पुनर्वास को सुनिश्चित करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, वे (अतिक्रमणकारी) भी इन्सान हैं और रेलवे व लोगों की जरूरतों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने रेलवे की आवश्यकता को स्वीकार किया, लेकिन प्रभावित लोगों के साथ मानवीय व्यवहार और पुनर्वास की आवश्यकता पर जोर दिया। पीठ रेलवे के उस आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हल्द्वानी में रेलवे की संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वाले लगभग 50,000 लोगों को बेदखल करने पर रोक के आदेश में संशोधन की मांग की गई थी। रेलवे ने कहा, पिछले साल मानसून के दौरान घुआला नदी के तेज बहाव के कारण पटरियों की सुरक्षा करने वाली एक दीवार ढह गई थी। परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए भूमि की एक पट्टी तत्काल उपलब्ध कराई जाए।

पीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से पूछा, क्या आपने अतिक्रमणकारियों को कोई नोटिस जारी किया है? आप जनहित याचिका के सहारे क्यों चल रहे हैं? पीठ ने कहा, मान लीजिए कि वे अतिक्रमणकारी हैं, फिर भी वे सभी इन्सान हैं और दशकों से रह रहे हैं। ये सभी पक्के मकान हैं। न्यायालय निर्दयी नहीं हो सकता, लेकिन साथ ही न्यायालय लोगों को अतिक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित भी नहीं कर सकते। जब सब कुछ आपकी आंखों के सामने हो रहा है तो सरकार के रूप में आपको भी कुछ करना था। जस्टिस कांत ने पूछा, तथ्य यह है कि लोग 3-5 दशकों से, बल्कि शायद आजादी से भी पहले से वहां रह रहे हैं। आप इतने सालों से क्या कर रहे थे?

कलेक्टरों को जवाबदेह क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए
एएसजी ने पीठ को सूचित किया कि सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम 1971 के तहत कार्यवाही भी उनके खिलाफ लंबित है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, उन्होंने क्या किया? हमें कलेक्टरों को जवाबदेह क्यों नहीं ठहराना चाहिए? चूंकि कई निवासी दस्तावेज के आधार पर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं इसलिए जनहित याचिका तथ्यों के विवादित प्रश्नों को संबोधित करने के लिए प्रभावी उपाय नहीं है।

भूमि न मिलने से बुलेट ट्रेन समेत कई परियोजनाओं पर प्रभाव
एएसजी ने पीठ से रोक हटाने का अनुरोध किया और कहा कि भूमि की अनुपलब्धता के कारण रेलवे की कई विस्तार योजनाएं विफल हो गई हैं। वहां बुलेट ट्रेन चलाने की भी योजना है। पीठ ने पूछा कि वर्तमान उद्देश्यों के लिए कितने लोगों को बेदखल करना होगा। भाटी ने जवाब दिया, 1,200 झोपड़ियां।लगभग 30.40 हेक्टेयर रेलवे/राज्य के स्वामित्व वाली भूमि पर अतिक्रमण किया गया है और वहां लगभग 4,365 घर और 50,000 से अधिक निवासी हैं।

प्रभावित परिवारों की पहचान की जाए
पीठ ने कहा कि भूमि की उस पट्टी की पहचान की जाए, जिसकी आवश्यकता है। उन परिवारों की पहचान की जानी चाहिए, जो उस पट्टी से खाली होने की स्थिति में प्रभावित होंगे। ऐसी जगह का प्रस्ताव किया जाना चाहिए, जहां इन प्रभावितों का पुनर्वास किया जा सके।