जल्द यहाँ से निकलेगा वन्यप्राणी, खोजे जा रहे नायाब तरीके

कार्बेट फाउंडेशन ने मध्य प्रदेश स्थित कान्हा-बांधवगढ़  बांधवगढ़-संजय दुबरी कॉरीडोर में ऐसे अनेक तरीका आजमाए हैं, जो समस्या का निवारण प्रस्तुत करते दिखते हैं.

वन्य प्राणियों की सुरक्षा के साथ वनवासियों को इनके संरक्षक के रूप में स्थापित करने का प्रेरक कोशिश भी इसमें शामिल है. संस्था 2009 से टाइगर रिजर्व  उससे सटे क्षेत्रों में कार्य कर रही है  प्रशासन की मदद भी कर रही है.

वनों में संस्था के प्रशिक्षित कर्मचारी तैनात हैं, जो मूलरूप से वन्यप्राणियों  मानव के बीच संभावित प्रयत्न को रोकने में अच्छा किरदार निभा रहे हैं. फाउंडेशन के डायरेक्टर केदार गोरे कहते हैं, मानव-वन्यप्राणी प्रयत्न बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा है. पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी यह प्रयत्न चिंता का विषय है.देश में हर स्थान वन्यक्षेत्रों में मानव का बढ़ता दखल हर स्थान इस प्रयत्न का कारण बन रहा है. यही कारण है कि वन्यप्राणी बस्तियों, शहरों  घरों तक का रुख करते देखे जा सकते हैं. इस समस्या का शीघ्र निवारण न निकाला गया तो स्थिति भयावह होगी. फूड चेन पर भीषण संकट उत्पन्न हो जाएगा, जिसका प्रभाव समूचे पर्यावरण पर पड़ेगा.

कार्बेट फाउंडेशन संस्था गत 25 वर्ष से इस कार्य में जुटी हुई है. गोरे ने बोला कि मध्य प्रदेश में पिछले वर्षों में संरक्षित क्षेत्रों की स्थिति सुधरी है, लेकिन वन्यक्षेत्र का दायर सीमित ही है. यह पहलू भी मानव-वन्यजीव प्रयत्न का एक कारण बन रहा है. यहां बाघों के साथ ही अन्य मांसाहारी  शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ी है. इस कारण खासकर बाघ, तेंदुआ, भालूसहित अन्य मांसाहारी जानवर जंगल से बाहर आने लगे हैं. यह स्थिति ही चुनौती बनी हुई है. फाउंडेशन ने पिछले वर्षों में वनवासियों को जंगल में वन्यप्राणियों का महत्व समझाया  उन्हें उनसे बचाव का प्रशिक्षण दिया. इसके अतिरिक्त उनके लिए रोजगार, एजुकेशन  स्वास्थ्य की सुविधा भी उपलब्ध करा रहा है.
फाउंडेशन ने बांधवगढ़ में ट्राइबल म्यूजियम बनाया है, जो जल्द ही वन विभाग को सौंपा जाएगा. गोरे ने बताया कि इस कार्य में संस्था को देश की नामी कंपनियों से सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी) मद से फंड मुहैया कराया जाता है, जिसके वश फाउंडेशन ने वन्यप्राणी सुरक्षा  वनवासियों की तरक्की के लिए जो कार्य किए हैं, कान्हा-पेंच  बांधवगढ़-संजय दुबरी टाइगर रिजर्व के कॉरीडोर पर अब इन कामों का अच्छा परिणाम सामने आ रहा है. बांधवगढ़-संजय दुबरी कॉरीडोर में पांच हेक्टेयर क्षेत्र में तीन हजार से ज्यादा पौधे जम गए हैं, इससे भविष्य में बाघ को एक से दूसरे जगह पर जाने में परेशानी नहीं होगी.
छह गांव में वाटरशेड योजना के तहत स्टॉप डैम बनाए हैं. इससे ग्रामीणों की खेती को फायदा हुआ है  उनकी वन्यक्षेत्र पर निर्भरता घटी है. ग्रामीण परिवार ईंधन के लिए लकड़ी पर निर्भर होते हैं. लकड़ी की बचत के लिए फाउंडेशन ने दो हजार परिवारों को स्मार्ट स्टोव (विशेष चूल्हा) उपलब्ध कराए हैं. क्षेत्र में संस्था की ओर से मेडिकल कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. मोबाइल मेडिकल  पैथालॉजी यूनिट है, जो गांव-गांव जाकर वनवासियों का उपचार करती है. इसके लिए संस्था प्रति रोगी 10 रुपये लेती है, लेकिन डेढ़ से दो सौ रुपये की दवाएं भी देती है. वनकर्मियों को ट्रैप कैमरे लगाने, वन्यप्राणियों के हमलों से बचने की ट्रेनिंग देता है.
गोरे बताते हैं कि जंगलों में बिजली नहीं है. वनवासी कुएं खोदते हैं. जिनमें मुंडेर न होने के कारण इनमें वन्यप्राणी गिर जाते हैं. ऐसे डेढ़ हजार कुओं की फेंसिंग कराई गई है. 22 स्थानों पर सोलर पंप लगाए गए हैं. जिनमें गर्मियों में वन्यप्राणियों के लिए पानी का बंदोवस्त होता है. इसका प्रभाव यह होता है कि वन्यप्राणी जंगल से बाहर नहीं निकलते. ग्रामीणों को सौर ऊर्जा से बिजली दी जाती हैं.

बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रदेश के छह टाइगर रिजर्व के 250 स्कूलों में विशेष गेम दिया गया है. इसकी मदद से बच्चे जानवरों के महत्व  बचाव के बारे में सीख रहे हैं. पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण सहित टीकाकरण किया जाता है ताकि कोई बीमारी बाघ तक न पहुंचे. ग्रामीणों को सिलाई, अगरबत्ती निर्माण सहित अन्य रोजगार मूलक प्रशिक्षण दिए जाते हैं. कान्हा टाइगर रिजर्व के पूर्व फील्ड डायरेक्टर संजय शुक्ल बताते हैं कि फाउंडेशन वन्यप्राणियों से समाज को जोड़ने में वन विभाग की मदद कर रहा है, जिसके वश हम वनों  वन्यजीवन की सुरक्षा-संरक्षा की ओर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं.