स्कंद षष्ठी आज, जाने कैसे करें भगवान कार्तिकेय की पूजा

स्कंद षष्ठी के दिन स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें. मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें.पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र से करें. अंत में आरती करें. शाम को कीर्तन-भजन और पूजा के बाद आरती करें. इसके पश्चात फलाहार करें.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए. उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है.

इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है. देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है. चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं. तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा.

आज स्कंद षष्ठी है. स्कंद षष्ठी भगवान शिव (Lord Shiva) के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय (God Kartikeya) को समर्पित है. यह व्रत मुख्य रूप से दक्षिण भारत (South India) के राज्यों में लोकप्रिय है.

आज भक्तों ने ‘भगवान कार्तिकेय’ की पूजा अर्चना की. स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से भगवान कार्तिकेय प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है. दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है.

उनका प्रिय फूल चंपा है, इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था.

पौराणिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से जातक के जीवन में हर तरह की बाधाएं और परेशानियां दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है.