PM मोदी को सत्ता में वापसी का पूरा भरोसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में वापसी का पूरा भरोसा है. बाकी बचे दो चरणों के लिए प्रचार में व्यस्त पीएम ने हिन्दुस्तान टाइम्स के शिशिर गुप्ता  आर सुकुमार को दिए इंटरव्यू में बोला 2019 का चुनाव बेहद खास है क्योंकि इसमें 21वीं सदी में जन्मे लोगों को भी पहली बार वोट डालने का मौका मिल रहा है. उन्होंने बोला कि आज के युवाओं की अहमियत जाति या वंशवाद की पॉलिटिक्स नहीं बल्कि विकास का एजेंडा है. पांच वर्ष पहले सरकार का नेतृत्व संभालने के बाद से आए परिवर्तन के बारे में पूछे जाने पर 68 वर्षीय मोदी ने कहा, मेरी पाचन शक्ति मजबूत हो गई है. अब मैं अपमान को सरलता से पचा लेता हूं.

सवाल: क्या आपको सत्ता में फिर वापसी का भरोसा है?
जवाब: बिल्कुल, पहले दिन 26 मई 2014 से

सवाल: चुनाव में बड़े मामले क्या हैं?
जवाब: इस बार चुनाव में तीन मामले हैं. पहला विकास, दूसरा समावेशी विकास  तीसरा सभी दिशाओं में विकास. साल 2022 में हिंदुस्तान की आजादी के 75 वर्ष सारे होंगे. यह हम पर है कि हिंदुस्तान को ऐसा बनाए जिसपर हमारे स्वतंत्रता सेनानी गौरवान्वित हों. साल 2019 का चुनाव खास है क्योंकि पहली बार वो लोग भी मतदान कर रहे हैं जो 21वीं शताब्दी में पैदा हुए हैं. इन युवाओं पर इतिहास का वजन नहीं हैं वे बेहतर भविष्य चाहते हैं. ये युवा वंशावदियों द्वारा अपमानित नहीं होना चाहते. वे ऐसा देश चाहते हैं जहां योग्यता को मान्यता मिले. वे जाति आधारित राजनीतिक स्कूल नहीं चाहते. वे नया विकास एजेंडा चाहते हैं. इसलिए इस चुनाव में लोग उस नेता के लिए वोट करेंगे जिन्हें वे मानते हैं कि बेहतर देश का निर्माण कर सकता है  एक मजबूत समावेशी हिंदुस्तान की आधारशिला रख सकता है. लोग हमारे 60 महीने के कार्यकाल को देखेंगे  उन लोगों के कार्य से तुलना करेंगे जिन्हें 60 वर्ष तक शासन करने का मौका मिला.

सवाल: क्या आप मानते हैं कि यह चुनाव केवल मोदी समर्थन  मोदी विरोध के नाम पर लड़ा जा रहा है?
जवाब: लोग ट्रैक रिकॉर्ड  पार्टियों की ओर से पेश विकास की परिकल्पना के आधार पर अपने विकल्पों का मूल्यांकन कर रहे हैं. मेरे लिए हमारा कार्य  विकास की परिकल्पना प्रमुख मामला है. विपक्ष जहां पीएम के दावेदारों की कतार है, लेकिन दूरदृष्टि का अभाव है. उनकी योजना  एजेंडा मोदी विरोध, जाति  सांप्रदायिक पॉलिटिक्स है. बाकी यह तय है कि लोग इस महामिलावटी गठबंधन को नकार देंगे.

सवाल: क्यों इस चुनाव के बारे में संदेश जा रहा है कि दोनों तरफ से ध्रुवीकरण किया जा रहा है?
जवाब: आपको समझना होगा कि हम यहां कक्षा के मॉनिटर का चुनाव नहीं करने जा रहे हैं. हम यह तय करने जा रहे हैं कि देश किस दिशा में जाएगा. हम 130 करोड़ हिंदुस्तानियों का भविष्य तय करने जा रहे हैं. खासतौर पर 65 प्रतिशत उस आबादी का जिसकी आयु 35 वर्ष से कम है. बहुत कुछ दांव पर है. यह चुनाव दुनिया में हिंदुस्तान के उदय के लिए अहम मोड़ साबित होगा. मैं खुश हूं कि इस चुनाव में दोनों पक्षों का अंतर साफ रूप से सामने आ गया है. अब लोग देश को देखने के दो नजरियों में से साफ तौर पर चुनाव कर सकेंगे. वे जो कहते हैं कि परिवार पहले है या वे जो कहते हैं हिंदुस्तान पहले. वे जो आतंकवादी हमलों पर प्रेम लेटर भेजते हैं या वे जो आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं. वे जो टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ खड़े होते हैं या उनके साथ जो अपने सैन्य बलों के साथ खड़े हैं. वे जो देशद्रोह के दोषियों को बचाने का कोशिश करते हैं या वे जो देश की एकता की रक्षा के लिए जीने-मरने को तैयार हैं. वे जो रक्षा सौदों में दलाली कर हिंदुस्तान की सुरक्षा को निर्बल करते हैं या वो जो साबित करते हैं कि अंतरिक्ष में भी हिंदुस्तान की ताकत को स्थापित करते हैं. वो जो घोटाले के बाद घोटाले की सुर्खियों में रहते हैं या वो जिन्होंने घोटाले की संस्कृति का अंत किया. वो जिन्होंने देश की पांच हजार की संस्कृति को दागदार करने का कोशिश किया या वो जो हिंदुस्तानके गौरवमयी इतिहास से सीख लेकर उज्ज्वल भविष्य बनाना चाहते हैं. चुनाव सरल  स्पष्ट है. इसलिए अगर चुनाव की बात करते हैं जहां दोनों पक्षों की पहचान विभिन्न मुद्दों पर उनके रुख रुख से हो तो मैं कहूंगा कि ध्रुवीकरण अच्छी वस्तु है.

सवाल: इस चुनाव में लगता है कि सम्बोधन का स्तर गिर रहा है. ममता बनर्जी ने बोला कि आपके हाथ खून से रंगे है. आपने राजीव गांधी (कहा भ्रष्टाचारी नंबर-1) पर टिप्पणी की. कांग्रेस पार्टी ने भी इसी तरह की रिएक्शन दी. यहक्या हो रहा है?
जवाब: मैं आपको पूरी सूची दे सकता हूं कि परिवार सहित (गांधी-नेहरू)कांग्रेस के अहम लोगों ने  उनके करीबियों ने मुझे क्या-क्या कहा. मुझे प्रियंका गांधी ने दुर्योधन कहा. संजय निरुपम ने औरंगजेब कहा. दीनदयाल भैरवा ने हिंदू आतंकवादी कहा. पहले भी मुझे विभिन्न नाम दिए गए. 2016 में राहुल गांधी ने मुझे सैनिकों के खून का दलाल बोला था. 2007 में सोनिया गांधी ने मुझे मृत्यु का सौदागर बोला था. ऐसे  वाकये हैं. बहुत लोगों ने मौजूदा पीएम को निशाना बनाया. ऐसे में जब हम पद के सम्मान की बात करते हैं, तो यही सम्मान सभी का होना चाहिए. कर्नाटक में देवेगौड़ा जी के लिए होना चाहिए. यह उनकी सरकार के लिए (पूर्व पीएम मनमोहन सिंह) होना चाहिए जिसके अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से फाड़ा गया.अगर आप पद के सम्मान की बात करते हैं तो फिर आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम अजयइया जी, एक दलित जिसका अपमान हैदराबाद एयरपोर्ट (राजीव गांधी द्वारा) पर किया गया. अगर अब कोई शिकायत करता है तो उसे पूरी पृष्ठभूमि को भी देखना चाहिए. जहां तक ममता जी की बात है तो एक पत्रकार के तौर पर आप निर्णय कर सकते हैं कि आप उनके बात करने के लहजे  भाषा से सहज है या नहीं. आप बंगाल के पत्रकारों से पूछिए क्या इस बयान से प्रदेश का कुछ होगा.

सवाल: देश के कई हिस्सों में मुकाबला ‘प्रेसिडेंशियल’ चुनाव की तरह लगता है  इसमें एक बड़ा मामला मोदी असर है. ऐसा नहीं लगता कि यह संसदीय व्यवस्था का महत्व कमतर करेगा?
जवाब: यह पूरा चुनाव प्रदर्शन पर है न कि धारणा पर. प्रदर्शन से अभिप्राय हिंदुस्तान सरकार की विभिन्न योजनाओं से है  लोकल सांसद इन योजनाओं को जमीन स्तर पर उतारने में शामिल होते हैं. ऐसे में इस चुनाव में बस यह कह देना कि केवल नाम कार्य कर रहा है गलत है. नाम भी चल रहा है  कार्य भी चल रहा है. एक ऐसी विचारधारा है जो कहती है कि बीजेपीको 180 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी. इसके प्रोफेसर  शिक्षक इसपर पाठ्यक्रम चला रहे हैं  डायरी बना रहे हैं. प्रत्येक साल विद्यार्थी नए होते हैं पर शिक्षक  उनके विचार वहीं रहते हैं.संसार बदल जाती है पर वह उसी पाठ्यक्रम से पढ़ाते हैं. इसी विचार के लोगों ने 2014 में भी यही बोला था.

सवाल: बेशक, पर क्या इससे परिस्थितियां जटिल नहीं होंगी? उदाहरण के लिए अगली बार अगर हमला होता है तो क्या इससे हमपर कार्रवाई करने का दबाव नहीं बढ़ेगा?
जवाब: तो क्या दबाव के भय से कुछ न करें?

सवाल:  सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
जवाब: हमारे पास बहुत सारे मौका हैं, अगर हम उनसे चूकते हैं तो यह गंभीर होगा. हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम एक भी मौका न छोड़ें.

सवाल: क्या अंतर पाते हैं 2014 के मोदी में  2019 के मोदी में?
जवाब: अपमान सहने की पाचन शक्ति बढ़ गई है.

सवाल: गठबंधान पर क्या राय है? आप भी गठबंधन में हैं  विपक्ष को महामिलावटी कहते है.
जवाब: अटल बिहारी वाजपेयी का एक बड़ा सहयोग दो-पक्षीय पॉलिटिक्स है. एक पक्ष बीजेपी के नेतृत्व में  दूसरा कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में. हमारा मॉडल केन्द्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार  क्षेत्रीय आकांक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला है. इसका सबूत हमारा पांच वर्ष का कार्यकाल है. वहीं कांग्रेस पार्टी की गठबंधन के प्रति दूसरी समझ है. चौधरी चरण सिंह को पीएम बनाओ  फिर जमीन खींच लो. चंद्रशेखरजी को पीएम बनाओ फिर सरकार गिरा दो. गुजराल को पीएम बनाओ  फिर सरकार गिरा दो.

खास बातें
– उरी-पुलवामा पर सटीक जवाब दिया
करीब दशक भर से पाक हमले के बाद हमले कर रहा था  उसे इनकी कोई मूल्य नहीं चुकानी पड़ रही थी. सर्जिकल स्ट्राइक  फिर एयर स्ट्राइक से हमने संदेश दिया अब आतंक को प्रायोजित करने का खामियाजा चुकाना होगा. हमने मजबूती से यह संदेश दिया कि इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि आतंकवादी कहां है, वे पाक के भीतर भी हों तो भी हमारी जद में है. यह आतंक से लड़ने की हिंदुस्तान की नीति में अहम परिवर्तन है.

– कश्मीर समस्या मैच फिक्सिंग जैसी
हमें यह समझना होगा कि जिस समस्या को मीडिया ‘कश्मीर समस्या’ के रूप में परिभाषित करता है, वह समस्या एक-दो जिलों तक सीमित है. हमारी सरकार इस समस्या को एक निश्चित क्षेत्र तक ही सीमित रखने में बहुत ज्यादा हद तक पास रही है. कश्मीर की समस्या वहां के कुछ परिवारों द्वारा की जा रही एक तरह की ‘मैच फिक्सिंग’ है, ये लोग बड़ी चालाकी से अपनी किरदार निभाते हैं.

– राजनीतिक नुकसान नहीं देखता
GST के साथ 21 महीनों के अपने अनुभवों से सीखते हुए हम GST को अधिक उपभोक्ता अनुकूल, व्यापारी के अनुकूल, व्यापार के अनुकूल, निर्माता के अनुकूल  सेवा प्रदाता के अनुकूल बनाने की दिशा में कई कदम उठा रहे हैं. अगर मैंने इन कदमों को उठाने में राजनीतिक नुकसान देखता तो मेरी सरकार  पिछली सरकारों के बीच क्या अंतर है. राष्ट्रहित में कुछ सख्त कदम उठाने की जरूरत है.

– किसानों के लिए दीर्घकालिक योजनाएं
यूपीए के कार्यकाल 2009-10 से 2013-14 के दौरान एमएसपी पर केवल 7 लाख मीट्रिक टन दाल  तिलहन की खरीद की गई थी. 2014-15 से 2018-19 के एनडीए कार्यकाल के दौरान 94 लाख मीट्रिक टन दाल  तिलहन की खरीद एमएसपी पर की गई. यही अंतर है हमारे  यूपीए के कार्यकाल में. इसके अलावा, हमारे पास किसानों के दीर्घकालिक कल्याण के लिए कई योजना है.

-रोजगार के मौका बढ़े
तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था में हमें पारंपरिक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के लिए अधिक मजबूत तंत्र की जरूरत है. रोजगार सृजन हो रहा है. ईपीएफओ (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन)  ईएसआईसी (कर्मचारी प्रदेश बीमा निगम) के आकड़े बताते हैं कि एक महीने में लगभग 10 लाख लोग नौकरियों से जुड़ रहे हैं, यानि 1.2 करोड़ नौकरियां एक वर्ष में सृजित हो रही हैं.