भारत का एक ऐसा मंदिर जहां पैर रखते ही होता है ये, धीरे-धीरे आ जाती है…

यहा मंदिर में 7 दिन तक रहकर सुबह शाम फेरी लगाने से लकवे की बीमारी में सुधार होता है। हवन कुंड की भभूति लगाते है और बीमारी धीरे-धीरे अपना प्रभाव कम कर देती है।

 

इस बात को लेकर डॉक्टर और साइंस के जानकार भी हैरान है कि बिना दवा से कैसे लकवे का इलाज हो सकता है। रोगी के जो अंग हिलते डुलते नहीं वे भी धीरे-धीरे काम करने लगते हैं।

लकवे से व्यक्ति की आवाज बंद होती है वह भी धीरे-धीरे आ जाती है। यहां बहुत सारे लोगों को इस बीमारी से राहत मिली है। यहा देशभर से सभी जाति धर्म के लोग आते है। भक्त यहां दान करते हैं, जिसे मंदिर के विकास के लिए लगाया जाता

आज भी उनकी समाधी पर परिक्रमा करने से लकवे से पीड़ित लोगों को राहत मिलती है। यहा नागोर के अलावा पूरे देशभर से लोग आते है। हर साल वैशाख भादवा अौर माघ महीने में विशाल मेला लगता है।

मंदिर में आने वाले लोगों के लिए नि:शुल्क रहने व खाने की व्यवस्था भी है। यहा कोई पण्डित महाराज या हकीम नहीं होता न ही कोई दवाई लगाकर इलाज किया जाता।

भारत देश में ऐसे बहुत सारे मंदिर ओर तीर्थ स्थान है जहां बहुत सारी बीमारियों का इलाज किया जाता है। राजस्थान के नागौर से चालीस किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर रोड पर कुचेरा कस्बे के पास बुटाटी धाम है .

जिसे चतुरदास जी महाराज के मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहा हर साल हजारों लोग लकवे के रोग से ठीक होकर जाते है। कहा जाता है कि करीब 500 वर्ष पूर्व चतुरदास जी जो एक सिद्ध योगी थे वे अपनी तपस्या से लोगो को रोग मुक्त करते थे।