एक बार फिर लंबा लटक सकता है अयोध्या मामला, रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में सुनाया जाने वाला फैसला अंतिम नहीं है। इस फैसले के खिलाफ संबंधित पक्ष रिव्यू पिटीशन लगा सकते हैं। इन परिस्तिथितियों में एक बार फिर मामला लंबा लटक सकता है। ध्यान रहे लगभग नौ साल पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या मसले का जो फैसला दिया था उसे सभी पक्षों ने मानने से इंकार कर दिया था।  हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गयी थाी। सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला पिछले नौ साल से किसी न किसी वजह से टलता आ रहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का हल कोर्ट से बाहर निकाले के लिए एक पैनल का गठन भी किया था, लेकिन वो पैनल भी इस मसले का हल नहीं ढूंढ पाया। आखिर में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट में दैनिक सुनवाई होगी और 16 नवंबर से पहले इस मसले पर अंतिम फैसला सुनाया जायेगा। अयोध्या मसले की सुनवाई 40 दिन तक करने के बाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसको शनिवार सुबह सुनाया जाना है।

ध्यान रहे 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।

इस मामले से जुड़ी तीनों पार्टियां निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान ने यह फैसला मानने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर की गई थीं।

इस मामले की 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई कर रहा था।. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामि हैं। जस्टिस बोबड़े अगले चीफ जस्टिस नामित किये जा चुके हैं। जस्टिस गोगोई के अवकाश प्राप्त करने के अगले दिन ही जस्टिस बोबड़े का शपथग्रहण होना है।