चैत्र नवरात्र के चौथे दिन ऐसे करे पूजा, जानें मंत्र, स्तुति, स्त्रोत, प्रार्थना व आरती

देवी कूष्माण्डा मंत्र ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ देवी कूष्माण्डा प्रार्थना सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ देवी कूष्माण्डा स्तुति या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ देवी कूष्माण्डा ध्यान वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥ पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्। मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥ प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्। कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ देवी कूष्माण्डा स्त्रोत दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्। जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्। परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

देवी कूष्माण्डा कवच हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्। हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥ कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा, पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम। दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥ कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥ तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥ माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥ तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥बी मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥न तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन यानी 16 अप्रैल को विधिपूर्वक मां कूष्माण्डा की पूजा की जानी है. ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से जातक को सूर्य सा तेज मिलता है, यश की प्राप्ति होती है तथा कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होती है.

इनका स्वरूप काफी अद्भुत होता है. आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजाओं वाली माता भी कहा जाता है. जिन्हें लाल रंग के फूल काफी पसंद होते है.