MP में चुनावी आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सत्याग्रह खत्म

मध्य प्रदेश के ग्वालियर से दिल्ली कूच पर निकले भूमिहीन चुनावी आचार संहिता लागू होने और नेताओं के आश्वासन के बाद अपने गांवों को लौट चले हैं। एकता परिषद के अध्यक्ष रनसिंह ने आईएएनएस से कहा, “सत्ताधारी दल और विपक्षी दल के आश्वासन के साथ चुनावी आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सत्याग्रह को समाप्त कर दिया गया है। सरकार को छह माह का समय दिया गया है, और अगर आश्वासन पर अमल नहीं होता है तो फिर सड़कों पर उतरेंगे।”

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देश भर से जमा हुए 25 हजार से ज्यादा सत्याग्रही चार अक्टूबर को अपना हक पाने के लिए दिल्ली की ओर बढ़े थे। तीसरे दिन शनिवार को वे मुरैना पहुंचे, जहां आयोजित एक सभा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्याग्रहियों से वादा किया कि उनकी सरकार आने पर वह जनजातीय कानून लागू करेंगे, ताकि जल, जंगल और जमीन से आदिवासियों को लाभ मिले।

सिंह ने आगे कहा, “सत्ताधारी दल भाजपा से ग्वालियर में और कांग्रेस से मुरैना में संवाद हो गया, तभी चुनावी आचार संहिता लागू हो गई, संगठन व अन्य ने समीक्षा करने के बाद आंदोलन खत्म करने का फैसला किया, क्योंकि सरकार अभी कोई बड़ा निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है।”

उल्लेखनीय है कि भूमि के अधिकार के लिए भूमिहीन तीसरी बार सड़कों पर उतरे थे। इससे पहले दो बार उन्हें आश्वासन मिले, आंदोलन खत्म हुआ, मगर मांगें अधूरी रहीं। तीसरी बार भी अपना हक पाने के लिए सड़क पर आए और सिर्फ आश्वासन लेकर लौटने को मजबूर हुए हैं। कई सत्याग्रही तो इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। वे दिल्ली तक जाकर अपनी ताकत दिखाना चाहते थे।

गांधी जयंती के मौके पर देश भर से 25 हजार से ज्यादा भूमिहीन जनांदोलन 2018 के लिए ग्वालियर के मेला मैदान में जमा हुए थे और अपना हक पाने के लिए चार अक्टूबर को दिल्ली के लिए चल पड़े थे।

इससे पहले ग्वालियर में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सत्याग्रहियों के बीच पहुंचकर केंद्र सरकार के साथ बातचीत का भरोसा दिला चुके थे। वहीं केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक सरकार का पक्ष रख चुके हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक पत्र भेजकर केंद्र सरकार द्वारा भूमिहीनों के लिए किए जा रहे प्रयासों का ब्यौरा दिया था।

एकता परिषद और सहयोगी संगठनों के आह्वान पर हजारों भूमिहीनों ने पांच सूत्री मांगों को लेकर जनांदोलन-2018 शुरू किया था। उनकी मांगों में आवासीय कृषि भूमि अधिकार कानून, महिला कृषक हकदारी कानून, जमीन के लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालयों के गठन, राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और क्रियान्वयन, वनाधिकार कानून 2006 व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी समिति बनाने की मांगें शामिल हैं।

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