महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के भीतर ज्यादा बनता है…, 7 महीने तक रहता है असर…

रिसर्चर्स ने कहा कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के लिए उम्र विरोधाभासी कारण नहीं है बल्कि बीमारी की गंभीरता है. बता दें एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली वायरस को बेअसर करने के लिए करती है.

गौरतलब है कि बीते साल दिसंबर में संक्रमण के मामले सामने आने के बाद दुनिया भर में अब तक कोरोना के 4,37,74,919 मामले पुष्ट पाए गए हैं. वहीं अब तक 11,64,499 लोगों की मौत हो चुकी है.

दूसरी ओर अब तक 3,21,78,747 लोग ठीक हो चुके हैं और पूरी दुनिया में 1,04,31,673 केस एक्टिव हैं. इस संक्रमण के मामले सबसे पहले चीन में सामने आए थे. कोरोना के कुल पुष्ट मामलों में फिलहाल अमेरिका, भारत और ब्राजील, क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं.

पुर्तगाल के प्रमुख संस्थान आईएमएम के मार्क वेल्होएन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने अस्पतालों में 300 से अधिक कोविड-19 रोगियों और स्वास्थ्य कर्मियों, 2500 यूनिवर्सिटी कर्मचारियों और कोरोना वायरस संक्रमण से उबर चुके 198 वॉलंटियर्स के शरीर में एंटीबॉडी स्तर का अध्ययन किया.

स्टडी में पता चला कि 90 प्रतिशत लोगों के शरीर में कोविड-19 की चपेट में आने के सात महीने बाद भी एंटीबॉडी पाया गया. छह महीनों की स्टडी के दौरान यह पता चला कि पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले औसतन ज्यादा एंटीबॉडी पाए. हालांकि, संक्रमण के कुछ महीने बाद दोनों में एंटीबॉडी का लेवल एक ही रह गया.

कोरोना वायरस से संक्रमित 300 रोगियों और इससे उबर चुके 198 लोगों पर किये गए अनुसंधान में यह बात सामने आई है. ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ इम्युनोलॉजी’ में प्रकाशित इस अनुसंधान में पाया गया कि सार्स-कोव-2 वायरस की चपेट में आने वाले लोगों के शरीर में छह महीने बाद भी एंटीबॉडी तत्व सक्रिय रहा.

पुर्तगाल (Portugal) की एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि शरीर में कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण से लड़ने वाला एंटीबॉडी महिलाओं की तुलना में पुरुषों के भीतर ज्यादा बनता है.

कहा गया कि इस महामारी के लक्षण महसूस होने के बाद, शुरुआती तीन हफ्तों में काफी तेजी से विकसित होता है और बीमारी की चपेट में आने के सात महीने बाद तक भी यह शरीर में मौजूद रहता है.