सुप्रीम न्यायालय (Supreme Court) से राफेल लड़ाकू विमान डील (Rafale Deal) मुद्दे में नरेन्द्र मोदी सरकार को बड़ी राहत मिली है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) की अगुआई वाली बेंच ने राफेल लड़ाकू विमान मुद्दे में दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। आइए, जानते हैं क्या है राफेल लड़ाकू विमान डील व इसको लेकर क्यों है इतना विवाद?
राफेल क्या है?
राफेल लड़ाकू विमान कई भूमिकाएं निभाने वाला व दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है व इसका निर्माण दसॉ एविएशन ने किया है। राफेल लड़ाकू विमान विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है।
यूपीए सरकार का क्या सौदा था?
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी भूमिका कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया प्रारम्भ की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए। के। एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी।
लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई
इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंड का एफ/ए-18 एस व दसॉ एविएशन का राफेल लड़ाकू विमान शामिल था। लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। दसॉ एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला। मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 भारत एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे।
यूपीए सरकार व दसॉ के बीच कीमतों व प्रौद्योगिकी के ट्रान्सफर पर लंबी वार्ता हुई थी। अंतिम बातचीत 2014 की आरंभ तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका। प्रति राफेल लड़ाकू विमान विमान की मूल्य का विवरण आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने इशारा दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा। कांग्रेस पार्टी ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स व हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी।