किसान नेताओं ने दी सरकार को बड़ी चेतावनी, अब मच सकता बवाल

पिछले महीने गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा व उपद्रव की घटना ने भी आंदोलन की छवि को नुकसान पहुंचाया है और इससे सरकार को भी किसान संगठनों को घेरने का मौका मिल गया।

इस बीच किसान नेताओं ने केंद्र सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। सोमवार को सोनीपत के खरखोदा अनाज मंडी में हुई किसान महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हम भीड़ से कानून ही नहीं बल्कि सरकार भी बदल देने की हैसियत रखते हैं। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां किसी भी सूरत में किसान पीछे नहीं हट सकते।

इस सिलसिले में पुलिस की ओर से अभी तक कई आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है और पुलिस इन सभी के खिलाफ कार्रवाई करने में जुटी हुई है।

उसके बाद से कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कई बार कहा है कि सरकार खुले दिल से किसान संगठनों से बातचीत को तैयार है। वे कभी भी समय बताकर बातचीत के लिए आ सकते हैं.

मगर सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस प्रस्ताव किसान संगठनों के पास नहीं भेजा गया है। इस कारण तीनों नए कृषि कानूनों को लेकर दोनों पक्षों में गतिरोध बना हुआ है और इसके जल्द खत्म होने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।

सरकार और किसान संगठनों में आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी और उसके बाद दोनों पक्षों में कोई बातचीत नहीं हुई है। इस बातचीत के दौरान सरकार की ओर से तीनों कानूनों को डेढ़ साल तक की स्थगित रखने का प्रस्ताव रखा गया था मगर किसान संगठन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे।

दूसरी ओर किसान संगठनों ने एक बार फिर सरकार को अपना रवैया बदलने की चेतावनी दी है। सोनीपत में हुई किसान पंचायत में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार पर जमकर निशाना साधा और चेतावनी दी कि हम कानून ही नहीं, सरकार भी बदल देंगे।

किसान संगठनों के रवैये से साथ है कि उन्होंने नए कृषि कानूनों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया है। अब हर किसी की नजर सरकार की ओर से उठाए जाने वाले कदमों पर टिकी है।

संसद में पारित तीन नए कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच पैदा हुआ गतिरोध खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। दोनों पक्षों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी और उसके बाद दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं।

दोनों पक्षों में बातचीत हुए एक महीने का समय बीत चुका है और नई बातचीत के कोई आसार भी नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में यह आंदोलन अब और लंबा खिंचता नजर आ रहा है।