केजरीवाल ने रातो – रात कर डाला ऐसा काम, देख चुनाव आयोग भी हुई परेशान

चुनाव आयोग नोटिस व एफआईआर से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहा। संभवतः इसीलिए देश में चुनाव दर चुनाव विवादित बयानों की संख्या बढ़ती जा रही है।

खास बात ये है कि चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की खबरें आने लगती हैं। आचार संहिता का दायरा सिर्फ भाषणों तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि चुनाव प्रचार के तरीकों, चुनाव में पैसा बांटने, देर तक सभा करने जैसे तमाम ऐसे आदेश हैं.

जिनकी धज्जियां उड़ाने में सियासी दल हों या नेता कभी नहीं कतराते। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग शक्तिविहीन है या फिर वह बड़े नेताओं के विरूद्ध कोई कार्रवाई करना ही नहीं चाहता!

चुनाव आयोग चुनाव के दौरान पार्टियों व नेताओं को नोटिस जारी करता है, कुछ मामलों में एफआईआर भी दर्ज कराई जाती है, लेकिन उसके बाद क्या इन मुकदमों पर कोई कार्रवाई होती है!

यदि नहीं होती, तो कार्रवाई कराने की जिम्मेदारी किसकी है? चुनाव आयोग को इन मुदकमों की याद तब आती है, जब अगला चुनाव होता है। यानी 5 वर्ष तक इन मुकदमों की पैरवी करने वाला कोई नहीं होता, जिससे ज्यादातर मुद्दे समाप्त हो जाते हैं।

एक आरटीआई के जवाब में चुनाव आयोग ने साफ-साफ बताया था कि आयोग के पास चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़े आंकड़ों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।

आवश्यकता पड़ने पर जिलों से रिकॉर्ड मांगे जाते हैं।दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) में मुद्दों से ज्यादा चर्चा नेताओं के बयानों की है।

नेता एक के बाद एक विवादित बयान दिये जा रहे हैं। चुनाव आयोग (Election Commission) ये तो मानता है कि इन नेताओं के बयान गलत हैं व उन्हें रोकने की जिम्मेदारी भी चुनाव आयोग की है,