मुस्लिम पक्ष ने भी स्वीकार किया सुप्रीम न्यायालय का फैसला
सुप्रीम न्यायालय के इस निर्णय पर उम्मीद के मुताबिक कोई प्रतिकूल रिएक्शन नहीं आई है। मुस्लिम पक्ष ने भी कुछ बिंदुओं से असंतुष्टि जताते हुए उच्चतम न्यायालय के निर्णय को ससम्मान स्वीकार किया है। निर्णय के फौरन बाद ऑल इंडिया मुस्लिम व्यक्तिगत लॉ बोर्ड (AIMPLB) की तरफ से की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के एडवोकेट रहे ज़फरयाब जिलानी ने मुसलमानों से अपील की कि इस निर्णय का कहीं कोई विरोध या इसके विरूद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कुछ बिंदुओं से हम संतुष्ट नहीं हैं लेकिन फिर भी हम उसका सम्मान करते हैं। ‘ उन्होंने यह जरूर बोला कि कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण या निर्णय के पुनर्विचार के लिए वह दोबारा उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं लेकिन इसका निर्णय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में किया जाएगा। इससे पहले इस बारे में कुछ भी बोलना मुनासिब नहीं है।
इस मामले को लेकर बदली मुसलमानों की सोच
सबसे अच्छी बात यह है कि न्यायालय का निर्णय आने से पहले तमाम मुस्लिम पक्ष सार्वजनिक रूप से यह बात कह चुके थे कि उच्चतम न्यायालय का जो निर्णय आएगा, वो बगैर किसी ना नुकुर के उन्हें कुबूल होगा। निर्णय आने के बाद इसी बात पर वो कायम भी है। दरअसल अयोध्या में साल 1992 में मस्जिद गिराए जाने के बाद से इस टकराव को लेकर मुसलमानों की सोच में बहुत परिवर्तन आया है। पहले जहां इस मामले पर तलवारें खिंची रहती थीं, वहीं अब मुस्लिम समुदाय ठंडे दिमाग से सोच रहा है। सोशल मीडिया पर जो मुस्लिम नौजवान रिएक्शन दे रहे हैं, उनमें बड़ा भाग उनका है जो यह कहते हैं कि अगर उच्चतम न्यायालय ने राम मंदिर के हक़ में निर्णय सुनाया है तो मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन भी लेने से मना कर देना चाहिए।
हालांकि मुस्लिम पक्ष की तरफ से उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कुछ विसंगतियों की तरफ संकेत किया गया है। मसलन उच्चतम न्यायालय ने माना है कि साल 1949 में मंदिर के अंदर मूर्तियां रखना एकदम गलत था व छह दिसंबर, 1992 को मस्जिद का गिराया जाना भी अवैध कार्य था। इसके बावजूद उच्चतम न्यायालय का निर्णय मंदिर के पक्ष में ही सुनाया गया। कुछ महीनों पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बोला था कि उच्चतम न्यायालय को ऐसे निर्णय करने चाहिए जिन्हें लागू किया जा सके। उनका संकेत केरल के सबरीमाला मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश पर दिए गए उच्चतम न्यायालय के निर्णय की तरफ था। इसे लेकर केरल में तीव्र जनाक्रोश था। उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बावजूद इसे लागू नहीं किया जा सका व स्त्रियों को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली।