पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि 2019 में कोरोना वायरस महामारी के कारण कमजोरों और खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति और खराब होगी.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यक खासकर हिंदू और ईसाई अपनी धार्मिक स्वतंत्रता या मान्यता का लाभ पूरी तरह उठाने में सक्षम नहीं हैं जिसकी गारंटी संविधान के तहत उन्हें दी गई है.
2019 में मानवाधिकार की स्थिति’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बहुत से समुदायों के लिये…. उनके धर्मस्थल के साथ भेदभाव किया जाता है, युवतियों का जबरन धर्मांतरण कराया जाता है और रोजगार तक पहुंच में उनके साथ भेदभाव होता है.’
एचआरसीपी ने कहा कि व्यापक तौर पर सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर डाले जाने के कारण समाज का सबसे कमजोर तबका अब न लोगों को दिखता है न उनकी आवाज सुनी जाती है.एचआरसीपी के मानद प्रवक्ता आई ए रहमान ने रिपोर्ट को जारी किये जाने के अवसर पर 2019 में पाकिस्तान के मानवाधिकार रिकॉर्ड को ‘बेहद चिंताजनक’ करार दिया और कहा कि अभी जारी वैश्विक महामारी के ‘मानवाधिकारों पर लंबी छाया डालने की उम्मीद है.’
मानवाधिकारों की विफलताओं को रेखांकित करते हुए रिपोर्ट में अहम की खातिर हत्या, अल्पसंख्यक समुदाय की नाबालिग लड़कियों का जबरन धर्मांतरण और ईशनिंदा कानून का लगातार इस्तेमाल लोगों को डराने और बदला लेने के लिये किये जाने का जिक्र है.
सिख और हिंदू लड़कियों के जबरन विवाह से जुड़ी कई खबरें हाल में सामने आई हैं, जिसकी वजह से भारत को पाकिस्तान सरकार के सामने यह मामला उठाना पड़ा.पाकिस्तान (Pakistan) आमतौर पर सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने यहां अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं और ईसाईयों ) पर होने वाले जुल्म और भेदभाव से इनकार करता रहा है.
हालांकि पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट ने इमरान सरकार के इन सभी झूठों पर से पर्दा उठा दिया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 मानवाधिकार के मामले में काफी चिंताजनक रहा है और अल्पसंख्यकों पर जुल्म भी बढ़े हैं.