हिंदू धर्म में है अक्षय तृतीया का विशेष महत्त्व , इन चीजों के दान का है खास महत्त्व

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, वैशाख मास विष्णु भगवान को बेहद प्रिय है. यह दान-पुण्य, धर्म-कर्म करने के लिए सभी महीनों में सबसे उत्तम होता है. यह भगवान विष्णु भक्ति का शुभ काल है.

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि {अक्षय तृतीया} को भगवान विष्णु के नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए थे.

इसीलिए इस दिन परशुराम जयंती और नर-नारायण जयंती मनाई जाती है. त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा भी महापुण्यदायी और महामंगलकारी होती है.

इस शुभ तिथि के दिन जौ, सत्तू, चना, गेहूँ, गन्ने का रस, जल से भरा कलश, दूध से बनी चीजें और स्वर्ण का दान दिया जाता है. इस तिथि को किये गए दान-पुण्य का फल कभी नहीं नाश होता है. इस तिथि को पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने एवं ब्राह्मणों को भोजन कराने से अनंतफल प्राप्त होता है.

इस तिथि पर किये गए दान -पुण्य का फल अक्षय होता है अर्थात इस दिन दिया गया-दान का फल कभी नष्ट नहीं होता है. इस लिए यह सनातन धर्म में दान धर्म का अचूक काल माना गया है. इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि यह 8 चिरंजीवियों में से एक, परशुराम की जन्म तिथि भी है.

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह साल में आने वाले 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक है. हिंदू धर्म ग्रंथों में अक्षय तृतीया के अलावा देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी व भड़ली नवमी को भी अबूझ मुहूर्त माना गया है.

अक्षय तृतीया हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है. हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ होती है. इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने से शुभ फलदायी होता है. आइये जानें कि यह तिथि इतनी शुभ क्यों होती है.