दिल्ली में हिंसा के चलते हिंदू लड़की के साथ हुआ ये, साथ खड़े रहे मुस्लिम पड़ोसी

दिल्ली के हिंसा प्रभावित इलाकों में अब स्थिति सामान्य होने लगी है। इस हिंसा में मृतकों की संख्या बढ़कर 42 पहुंच गई है। इन 42 लोगों में अभी तक 12 मृतकों की पहचान नहीं हो सकी है। दिलशाद गार्डन स्थित जीटीबी अस्पताल में करीब 200 से ज्यादा घायलों का इलाज चल रहा है।

 

जानकारी के अनुसार, जीटीबी अस्पताल की ओर से 38 लोगों की मौत की सूचना दी गई है। इनमें 28 शव अस्पताल लाए गए और 10 लोगों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

वहीं एलएनजेपी अस्पताल में 3 और जग प्रवेश चंद्र अस्पताल में भी 1 युवक की मौत की सूचना है।नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उत्तर पूर्वीृ दिल्ली में रविवार से भड़के सांप्रदायिक संघर्ष का अंजाम इतना बुरा हुआ कि अब सड़कों पर चारों तरफ ईंट-पत्थर बिखरे हुए दिखाई दे रहे हैं। मकान, दुकानें जला दिए गए, लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया गया।

चांद बाग इलाके में संकरी गली में सावित्री प्रसाद का छोटा सा घर है, जहां उनकी शादी की रस्में पूरी की गईं. सावित्री के घर से थोड़ी दूर आगे मुख्य सड़क है.

जो युद्ध का मैदान नजर आ रही थी जहां दुकानों और कारों को आग हवाले कर दिया गया था. सड़क पर बिखरे पड़े तबाही के सबूत नजर आ रहे थे. दिल्ली हिंसा में अब तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 38 हो चुकी है.

सावित्री के पिता भोदय प्रसाद कहते हैं, ‘हम छत पर गए और देखा कि चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ धुंआ नजर आ रहा था. यह नजारा सोमवार और मंगलवार दो दिनों तक बना रहा.’

उन्होंने कहा, “यह भयानक है. हम सिर्फ शांति चाहते हैं,” भोदय प्रसाद ने कहा कि वह वर्षों से इस क्षेत्र में मुसलमानों के साथ बिना किसी परेशानी के रह रहे हैं.

भोदय प्रसाद ने कहा, “हम नहीं जानते कि हिंसा के पीछे कौन लोग हैं, लेकिन वे मेरे पड़ोसी नहीं थे. यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है.”

सोमवार 24 फरवरी को हल्दी की रस्म थी और उसी दिन सावित्री के हाथों में मेंहदी लगी थी. लेकिन उसी दिन इलाके में हिंसा भड़क उठी थी.

उत्तर पूर्वी दिल्ली जल रही थी और मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदू परिवार को अपनी बेटी की शादी कैंसिल करने के लिए मजबूर हो पड़ा. हाथों में मेहंदी, और बदन पर हल्दी लगाए सावित्री प्रसाद मंगलवार को हिंसा भड़कने की वजह से रोने लगी थीं.

सावित्री बताती हैं कि मंगलवार 25 फरवरी को उनकी शादी की तारीख थी. लेकिन उनके पिता ने हिंसा की वजह से एक दिन बाद शादी का आयोजन किया.

सावित्री प्रसाद के पिता कहते हैं कि उनके मुस्लिम पड़ोसी ही उनके परिवार के साथ रहे और उनकी मौजूदगी से वह सकून महसूस करते हैं. सावित्री प्रसाद बताती हैं, ‘मेरे मुस्लिम भाइयों ने आज मुझे बचाया.’

यह बताते हुए सावित्री प्रसाद फिर रोने लगीं और कहा कि परिवार और मुसलमान पड़ोसियों की वजह से उन्हें सकून का अहसास हो रहा है.