अगर अखिलेश-शिवपाल मिला ले हाथ , फिर 2022 में हो सकता ऐसा…

जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी और सपा के बीच कांटे का मुकाबला होने की संभावना दिख रही है. सूबे में कई जिलों में निर्दलीय ही निर्णायक स्थिति में हैं.

जिनमें शिवपाल यादव के काफी समर्थक भी जीतकर आए है. खासकर इटावा, मैनपुरी, औरया, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे जिले में, जिन्हें मुलायम परिवार के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है.

यहां लंबे अरसे से सपा का सियासी प्रभुत्व रहा है. मुलायम बेल्ट में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अगर शिवपाल और अखिलेश साथ आते हैं तो बीजेपी की चुनौतियों से निपट ही नहीं सकते बल्कि उसे मात भी दे सकते हैं.

इटावा जिला पंचायत में सपा का 32 सालों से कब्जा है और अगला अध्यक्ष भी सपा से होगा यह चुनाव के नतीजों ने तय कर दिया है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इटावा जिले में दो सीटों और 2014-2019 में इटावा संसदीय क्षेत्र फतह करने वाली बीजेपी केवल एक जिला पंचायत सदस्य ही जिता पाई है. इटावा में कुल 24 जिला पंचायत सदस्य हैं, जिनमें से 9 सपा, 8 प्रसपा, 1 बसपा, 1 बीजेपी से और 5 निर्दलीय जीते हैं.

सूबे में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में अपनों को जिताने की होड़ में एक बार फिर चाचा-भतीजे का अघोषित तालमेल दूसरे दलों के लिए मुलायम बेल्ट में चुनौती बन सकता है.

ऐसे ही अखिलेश यादव और आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी का गठजोड़ ने पश्चिम यूपी में बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है. वहीं, पूर्वांचल के इलाके में निर्दलीय काफी अहम भूमिका में हैं, जिन्हें साधने में जो कामयाब होगा उसी का जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के पद पर कब्जा होगा.

उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने के लिए जोड़-तोड़ शुरू हो गई है. इटावा में ‘यादव परिवार’ की प्रतिष्ठा बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव के हाथ मिलाने का फॉर्मूला बीजेपी को रोकने में हिट रहा है.

ऐसे ही अगर जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में भी चाचा-भतीजे तालमेल जारी रखते हैं तो मुलायम बेल्ट में बीजेपी को रोकने में कामयाब हो सकते हैं. पंचायत चुनाव के नतीजों ने अखिलेश-शिवपाल के करीब आने के संकेत दे दिए हैं, जिसकी बुनियाद पर 2022 की सियासी पटकथा भी लिखी जा सकती है.