अयोध्या विवाद का ऐतिहासिक पटाक्षेप, सरकार ने दिया तीन महीने का समय

सुप्रीम कोर्ट ने सालों से चले आ रहे अयोध्या विवाद का ऐतिहासिक पटाक्षेप कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवादित स्थल मुख्य पक्षकार रामलला विराजमान को दिया जाए। इस पर मंदिर बनाने के लिए केंद्र एक ट्रस्ट का निर्माण करें। सुप्रीम कोर्ट ने इस ट्रस्ट को बनाने के लिए केंद्र  सरकार को तीन महीने का समय भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ये माना है कि मुस्लिम पक्ष की अनदेखी नहीं की जा  सकती, मुस्लिम पक्ष की संवेदना और सहानुभूति के मद्देनजर मस्जिद बनाने के लिए प्रथम मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने का आदेश हुआ है।

भूमि विवाद में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने करीब 45 मिनट में अपना फैसला पढ़ा। यह जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज जो फैसला दे रही है, वह 2.77 एकड़ जमीन से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट जमीन के इस हिस्से का मालिकाना हक तय करेगा। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया।

सुन्नी पक्ष को दूसरी जगह जमीन मिलेगी: चीफ जस्टिस

चीफ जस्टिस ने कहा कि हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाकर स्कीम बताए।

हाई कोर्ट का फैसला तार्किक नहीं: SC

SC ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 तक नमाज पढ़ी गई। टाइटल सूट नंबर 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और 5 (रामलला विराजमान) में हमें संतुलन बनाना होगा। हाई कोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे, उसे दो हिस्सों में माना है। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा जमीन को दो हिस्सों में बांटना तार्किक नहीं था। इसका मतलब है कि रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड अब दो पक्ष ही होंगे। हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है।

1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे: SC

SC ने कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। SC मुख्य पार्टी रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मान रही है। सुन्नी पक्ष ने जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वहां लगातार नमाज अदा की जा रही थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे।

खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद: SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ASI की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी पारदर्शिता से हुआ है। कोर्ट ने कहा है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल रचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि कलाकृतियां जो मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गईं। मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि ASI की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि नीचे संरचना मिलने से भी हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता।

अभी तक… 

– ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा- हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन संतुष्ट नहीं, विचार विमर्श करके रिव्यू लेने पर फैसला करेंगे।

 जफरयाब जिलानी ने कहा- सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी की हार जीत नहीं है, अमन और शांति बनाएं रखें।