देश का सबसे पुराना मुद्दा है व इस मुद्दे में 40 दिनों तक नियमित सुनवाई हुई थी। यह उच्चतम न्यायालय के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई थी।
सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी। अयोध्या मुद्दे में उच्चतम न्यायालय आज प्रातः काल 10:30 बजे अपना निर्णय सुनाएगा। इस केस में मुस्लिम पक्ष ने जो दलीलें जीं, आइए उन पर डालते हैं एक नजर:
-मस्जिद का कोई तय डिजाइन ज़रूरी नहीं
मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट निजाम पाशा ने भी बोला था कि बाबरी मस्ज़िद की वैलिडिटी पर सवाल उठाने वाली हिंदू पक्ष की दलीलें ग़लत हैं। बिना किसी मीनार के या बिना वजूखाने के भी मस्जिद हो सकती है। मस्जिद के डिजाइन का शरिया से सीधा कोई वास्ता नहीं है। क्षेत्र विशेष के वास्तु शिल्प के आधार पर मस्जिद बनाई जाती रही है। ये देखना होगा कि लोग क्या मानते हैं। क्या बाबरी मस्जिद में वजू करने की व्यवस्था थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम में घर से भी वजू करके मस्जिद आने की परम्परा रही है।
-निर्मोही होकर भी सम्पति से मोह
विवादित ज़मीन पर निर्मोही अखाड़े के दावों को लेकर निज़ाम पाशा ने दिलचस्प दलील दी थी। पाशा ने बोला था कि निर्मोही का मतलब है कि जो मोह से परे हो, जिसे सम्पतियों से लगाव न हो, वो निर्मोही कहलाता है। लेकिन अखाड़ा उसी (सम्पति) के लिए क़ानूनी जंग लड़ रहा है।
-श्री रामजन्म जगह को न्यायिक आदमी का दर्जा नहीं’
मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट राजीव धवन ने बोला था कि मैं ये मान लेता हूं कि श्री राम ने वहां जन्म लिया लेकिन क्या इतना भर होने से श्रीराम जन्मस्थान को न्यायिक आदमी का दर्जा (जीवित आदमी मानकर उनकी ओर से मुकदमा दायर) दिया जा सकता है.1989 से पहले किसी ने श्री रामजन्म जगह को न्यायिक आदमी नहीं माना। राजीव धवन ने अपनी दलीलों के जरिये श्री रामजन्म जगह को न्यायिक आदमी का दर्जा देने पर सवाल उठाते हुए कई उदाहरण दिये। बोला था कि श्री गुरु ग्रंथ साहब जी को जब तक गुरुद्वारा में प्रतिष्ठित नहीं किया जाता, तब तक उन्हें भी ‘न्यायिक व्यक्ति’ नहीं माना जा सकता। इसी तरह हर मूर्ति को न्यायिक आदमी का दर्जा नहीं दिया जा सकता।