सावरकर की दो किताबों को फिर से छापेगी गोवा सरकार,मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार विनायक दामोदर सावरकर द्वारा लिखित दो पुस्तकों- 1957 चे स्वातंत्र्य समर और गोमांतक को फिर से छापेगी और उन्हें राज्य के सभी पुस्तकालयों में प्रसारित करेगी। सावंत ने पणजी में कुमाऊं साहित्य महोत्सव (केएलएफ) के समापन समारोह में कहा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर एक गुमनाम नायक थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से लड़ाई लड़ी, सबसे क्रूर सजा का सामना किया और फिर भी भारत की आजादी के बाद, लोगों के एक वर्ग ने उनके खिलाफ केवल झूठ, झूठ और नफरत फैलाई है। उन्होंने कहा, “हम भारतीय इस गौरवशाली देशभक्त के जीवन और कार्यों को स्वीकार करने में काफी हद तक विफल रहे हैं।”

1957 चे स्वातंत्र्य समर पुस्तक के बारे में बोलते हुए, सावंत ने कहा, इस पुस्तक ने कई युवाओं में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित की और ब्रिटिश शासन ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया। सौभाग्य से, इस पुस्तक की केवल एक प्रति गोवा के एक व्यक्ति के पास सहेज कर रखी गई थी, और इससे इसे फिर से मुद्रित करने में मदद मिली।

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को कहा कि जो इतिहास भारत पर थोपा गया, वह वास्तव में पश्चिम का दुष्प्रचार है। उन्होंने कहा कि घटनाओं का दर्ज किया जाना ‘राय से प्रेरित’ होने के बजाय ‘तथ्यों’ पर आधारित होना चाहिए। सावंत यहां कुमाऊं साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन विक्रम संपत की विनायक दामोदर सावरकर पर आधारित पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मेरी राय में, इतिहास उन चीजों का स्वतंत्र प्रस्तुतीकरण होना चाहिए जो अतीत में हुई हैं। अनुभव और समझ के आधार पर किसी की अपनी व्याख्या हो सकती है। लेकिन इतिहास को तथ्य से प्रेरित होना चाहिए, न कि राय से।’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘दुर्भाग्य से, हमारे देश में, जो इतिहास हम पर थोपा गया है, वह पश्चिम का दुष्प्रचार और वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इस पर आधारित है। उन्होंने सोचा कि हम सपेरों की भूमि हैं, उन्होंने सोचा कि हम एक गरीब देश हैं। मेरा सवाल है कि क्या उन्होंने हम पर इसलिए आक्रमण किया क्योंकि हम गरीब थे? उत्तर निश्चित रूप से ‘नहीं’ है।’

सावंत ने कहा कि सावरकर इस दुष्प्रचार को चुनौती देने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्र समर’ के माध्यम से लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगाया और इस कारण अंग्रेज इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर हुए। उन्होंने कहा कि सावरकर को अंग्रेजों के हाथों क्रूर दंड का सामना करना पड़ा लेकिन आजादी के बाद लोगों के एक वर्ग ने उनके बारे में पूरी तरह झूठ फैलाया।