आर्थराइटिस की समस्या को दूर करने के लिए करे ये…

आर्थराइटिस में मुख्यत वजन सहने वाले जोड़ जैसे घुटने  कूल्हे प्रभावित होते हैं. यह रोग में घुटने या कूल्हे के जोड़ों के बीच की गद्दियों (चिकनाई) को नुकसान पहुंचाता है.

चिकनाई समाप्त होने से जोड़ की हड्डियों का आपस में घर्षण (रगड़) होता है. इससे हड्डियोंं पर दबाव आता है  रोगी को दर्द होने लगता है. मरीज को दिनचर्या में कठिनाई होती है. आर्थराइटिस को जोड़ों के टूट-फूट का रोग भी कहते हैं. इसमें जोड़ विकृत हो जाते हैं.

युवाओं में भी आर्थराइटिस
बढ़ती आयु में आर्थराइटिस सामान्य बात है लेकिन बदलती जीवनशैली से अब यह बीमारी कम आयु के लोगों में भी अधिक देखने को मिल रही है. 30-35 साल में भी इसके मरीज देखने में आ रहे हैं. जबकि पहले यह बीमारी पहले 60-65 साल के बाद देखने को मिलती थी. इसमें जोड़ों को आराम न मिलना भी बड़ी वजह है.
शुरू होते ही दें ध्यान
शुरू में इसकी पहचान हो जाए तो बचाव संभव है. कुछ दवाइयों, जीवनशैली में परिवर्तन  फिजियोथैरेपी से फायदा मिलता है. इसलिए इसका ध्यान रखें.
ऐसे होती है जांचें
एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआइ करते हैं. फिर कार्टिलेज की स्थिति को जांचा जाता है. मरीज को खड़ा करके एक्स-रे किया जाता है जिससे घुटनों की स्थिति पता चलती है.
नशे से जोड़ों में घटता है ब्लड फ्लो
कम आयु में कूल्हे के जोड़ बेकार होने के मुख्य कारणों में धूम्रपान, अल्कोहल लेना, युवाओं में बॉडी बनाने या फिर दवाइयों के माध्यम स्टेरॉयड का अधिक सेवन और खेलकूद के दौरान जोड़ पर चोट लगना आदि हैं. अधिक मात्रा में स्टेरॉयड्स, अत्यधिक धूम्रपान और अल्कोहल से हड्डियों में रक्त का संचार घटने लगता है. इससे ब्लड हड्डियों के सेल्स तक नहीं पहुंच पाता है जिससे हड्डियों के ऊतक (टिश्यू) नष्ट हो जाते हैं. ऊतक नष्ट होने से जांघ की हड्डी के ऊपरी गोल सिरे का भाग बेकार होने लगता है. धीरे-धीरे पूरा जोड़ समाप्त हो जाता है.
ये हैं प्रमुख कारण
कम आयु में घुटनों के जोड़ों में आर्थराइटिस के प्रमुख कारण वंशानुगतता, अत्यधिक शारीरिक वजन, व्यायाम न करना, जोड़ पर चोट लगना इत्यादि हैं. गलत खानपान एवं जीवनशैली से कम आयु में ऑस्टियो आर्थराइटिस हो रहा है. जंक-फास्ट फूड से शरीर के जोड़ों की हड्डियों को कैल्शियम और अन्य महत्वपूर्ण खनिज नहीं मिल पाते हैं.
युवा मरीज तो लंबी अवधि वाले इंप्लांट
बाजार में कई तरह के इंप्लांट उपस्थित हैं. इनमें अधिकांश की जीवन 15-20 साल होती है जबकि कुछ की 30 साल तक. अधिक आयु के लोगों में कम जीवन वाले जबकि युवाओं में लंबी अवधि वाले इंप्लांट लगवाने चाहिए.