डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सीट तय, जानें कौन कहां से लड़ेगा चुनाव

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से लड़ाने की तैयारी है। यही नहीं राज्य के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा की सीटों पर भी सहमति बनती दिख रही है।

केशव प्रसाद मौर्य को कौशांबी जिले की सिराथू विधानसभा सीट से उतारा जा सकता है। यह उनकी पारंपरिक सीट रही है। वह भाजपा के बड़े ओबीसी नेताओं में से एक माने जाते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्मपाल सैनी समेत कई अन्य ओबीसी नेताओं के पार्टी से जाने के बाद उनकी अहमियत और बढ़ गई है। उन्हें चुनावी समर में उतारकर भाजपा ओबीसी वोटबैंक को साधने की कोशिश में है। सिराथू में 5वें चरण में चुनाव होना है।

केशव प्रसाद मौर्य के अलावा दिनेश शर्मा को लखनऊ की तीन में से किसी एक सीट से उतारने की तैयारी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक एक तरफ भाजपा सीएम योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से उतारकर हिंदुत्व को धार देना चाहती है। इसके अलावा दिनेश शर्मा को ब्राह्मण चेहरे और केशव प्रसाद मौर्य को ओबीसी फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करने की तैयारी है।

यही नहीं इन दोनों नेताओं को पूरी आक्रामकता के साथ प्रचार में उतारा जा सकता है। दरअसल प्रदेश में ओबीसी बिरादरियों और ब्राह्मणों की नाराजगी का नैरेटिव विपक्ष की ओर से तैयार किया गया है। ऐसे में भाजपा इन नेताओं को आगे करके इसकी काट करने की कोशिश कर सकती है।

यादव बिरादरी इस चुनाव में सपा के साथ मजबूती से खड़ी दिखाई दे रही है। इसलिए बीजेपी की रणनीति है कि अन्य ओबीसी वर्गों को छिटकने से रोका जा सके। केशव प्रसाद मौर्य ने पहली बार 2012 में विधानसभा चुनाव सिराथू सीट से ही लड़ा था। यहां उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी। इससे पहले यह सीट बसपा का गढ़ हुआ करती थी। इसके बाद केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया था और यहां भी वह बड़े अंतर से जीते थे। यह सीट जवाहर लाल नेहरू की भी सीट रही है।

इसके बाद भाजपा ने 2016 में उन्हें विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी थी। 2017 में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी और इसके बाद उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया। हालांकि माना जाता है कि वह सीएम बनने की रेस में खुद को मान रहे थे। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने कभी खुलकर इस बारे में बात नहीं की। केशव प्रसाद मौर्य आरएसएस के पुराने नेता रहे हैं और वीएचपी में थे। विश्व हिंदू परिषद के नेता रहे अशोक सिंघल के वह करीबी थे। कहा जाता है कि वीएचपी कोटे से ही पहली बार वह चुनावी समर में उतरे थे।