दिल्ली हिंसा : महिलाओ ने खोला ये बड़ा राज , कहा लोगो ने हमारे सामने किया…

यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में विस्तार से पूछने पर वह भावुक हो जाती हैं. बुर्के के बीच से देख रही आफरीन की आंखें भर आती हैं. धीमे से वे कहती हैं, ‘मेरे पैर में चप्पल भी नहीं थी बिना बुर्के के मैं बाहर भागी.

 

उस दिन कुछ भी हो सकता था, वो लोग रेप भी कर सकते थे. मुझे बुरी तरह नोचा जा रहा था, स्तन खींचे जा रहे थे. उस दिन खुदा की मेहरबानी से बच निकले, लेकिन उन्होंने हमारा पूरा घर बर्बाद कर दिया. सारा सामान तोड़ दिया.’

आफरीन कहती हैं, ‘पंद्रह से बीस लोग घर में घुसे थे और हर कोई मेरे स्तन छूने की कोशिश कर रहा था. मुझे समझ ही नहीं आया कि जान बचाऊं या इज्जत.’

आफरीन के घर से चंद मकानों की दूरी पर रेशमा का घर है. रेशमा तलाकशुदा है और अपने माता-पिता और दो बच्चों के साथ रहती हैं. वे बातचीत शुरू होने से पहले कहती हैं कि वह नहीं चाहती कि उनकी तस्वीर, ऑडियो या वीडियो सार्वजनिक हों.

हमारे आश्वासन पर रेशमा बताती हैं, ’24 फरवरी की रात हमारे मोहल्ले में हमला हुआ था. सुबह से ही खबरें मिल रही थी कि दंगे हो रहे हैं इसलिए डर का मौहाल था.

रात के समय अचानक पड़ोस से चीखें सुनाई देने लगीं, जो बढ़ती गईं. हमने घर अंदर से बंद कर लिया था लेकिन दंगाई बाहर से ही घर में पेट्रोल बम फेंक रहे थे, जिससे हमारे घर का एक हिस्सा ढह गया. घर में धुंआ भरने और घर के पूरा ढहने के डर से हम दरवाजे खोलकर बाहर भागने लगे.’

रेशमा ने झिझकते हुए आगे बताया, ‘रास्ते में दंगाइयों की भीड़ ने मुझे दबोच लिया, वे मेरे कपड़े फाड़ने लगे. एक आदमी ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया. मैं हिल भी नहीं पा रही थी. वो मेरे शरीर को टटोलने लगा, जैसे कुछ ढूंढ रहे हैं. मैं बहुत डर गई थी. वो आदमी मेरे शरीर पर हर जगह अपने हाथ फेर रहा था. उसने कसकर मेरी योनि पकड़ ली थी, मैं चीख रही थी लेकिन वो आदमी लगातार हंस रहा था और गालियां दे रहा था.’

रेशमा अपनी गर्दन दिखाते हुए कहती हैं, ‘मेरे गले पर अभी भी उस वहशी के दांत के निशान है. मेरे कपड़े आधे फट चुके थे, योनि से खून बह रहा था. क्या ये सब रेप से कम है क्या? मर्दों के लिए हम औरतें खिलौना होती हैं. जिस तरह से वह शख्स मुझे पकड़े हुआ था, मैं छटपटा रही थी लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.’

रेशमा के घर से निकलकर हम तरन्नुम के घर पहुंचे. तरन्नुम एक अधेड़ उम्र की महिला हैं. घर में शौहर और दो जवान बेटियां हैं. दूसरी मंजिल पर तरन्नुम के घर पहुंचे, तो मलबे के ढेर के बीच चारपाई पर लेटी तरन्नुम हमें देखकर रोने लगीं.

उनके शौहर मूढ़े पर बैठने का इशारा करते हैं. रोती हुई तरन्नुम कहती हैं, ‘अब क्या करेंगे जीकर? कुछ नहीं बचा, न पैसा, न घर, न इज्जत.’

आवाज रिकॉर्ड करने के आग्रह पर तरन्नुम के शौहर कहते हैं, ‘आप ऐसे ही बात कर लीजिए, कुछ रिकॉर्ड मत कीजिए. सुना है आजकल टेक्नोलॉजी बहुत फास्ट हो गई है, आवाज से पहचान हो जाती है. मेरी दो बेटियां हैं, जिनका इसी साल निकाह होना है. इन्हीं की खातिर चुप हैं कि कहीं इनके निकाह में कुछ रुकावट न आ जाए.’

दिल्ली के उत्तरपूर्वी इलाकों में हुई हिंसा के दौरान लूटपाट, जान और माल के नुकसान की खबरें शुरुआत से ही सुर्खियों में रहीं लेकिन हिंसा के दौरान महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन शोषण की घटनाएं बमुश्किल ही बाहर निकल पाई हैं.

इस दौरान न सिर्फ महिलाओं को देखकर आपत्तिजनक इशारे किए गए बल्कि उन्हें गलत तरीके से छुआ गया और उनके साथ शारीरिक हिंसा भी हुई. दंगों के दौरान चांदबाग में जब लोग दंगाइयों की भीड़ से खुद की जान बचा रहे थे, तब ये महिलाएं अपनी जान के साथ-साथ अपनी आबरू बचाने की कोशिश में थीं.

दंगा प्रभावित इलाकों से गुजरते हुए द वायर जब चांदबाग पहुंचा तो वहां कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि दंगाइयों ने किस तरह हिंसा के बीच महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया. ये महिलाएं समाज और पुलिस के डर से सामने नहीं आईं और न ही आना चाहती हैं.

दंगाइयों की हैवानियत का शिकार हुईं इन पीड़ित महिलाओं में से कोई मां है, जिसकी दो बेटियों की शादी इसी साल होनी है, कोई अधेड़ उम्र की विधवा है, तो कोई नवविवाहिता. इन महिलाओं में इस कदर खौफ़ है कि अपने साथ हुई इस ज्यादती की शिकायत ये थाने में दर्ज नहीं कराना चाहतीं.

इन्हीं में से एक 26 साल की आफरीन है, जो अपने शौहर के साथ चांदबाग में रहती हैं. इनकी शादी को डेढ़ साल हुए हैं. जब उनसे बात करने उनके शौहर के साथ उनके घर पहुंचे, तो पहले वह हमें देखकर हिचकिचाईं.

बुर्का ओढ़े कमरे के एक कोने में बैठी आफरीन परेशान थीं कि कहीं हम उनकी बुर्के में ही तस्वीर न खींच लें या उनसे हो रही बातचीत रिकॉर्ड न कर लें. आफरीन के शौहर ने उन्हें समझाया कि हमारे पास न कोई कैमरा है और न ही माइक, इसलिए उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है.

बुर्के में ढकी हुई आफरीन की सिर्फ आंखें दिख रही थीं, जिनमें उनकी पीड़ा साफ दिखाई दे रही थी. शौहर के समझाने पर आफरीन ने धीरे-धीरे अपनी आपबीती बताना शुरू की.

उन्होंने बताया, ’24 फरवरी की रात अचानक से कुछ लोग छत से कूदकर हमारे घर में घुसे. हमारे घर के बाजू में एक खाली प्लॉट है, वहीं से भीड़ घर में घुसी और सामान तोड़ने लगी. मैं और मेरे शौहर मेन गेट की तरफ भागे लेकिन भीड़ में से कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया. मुझे गालियां दी गईं और मेरा बुर्का खींचकर फाड़ दिया गया. मेरे शौहर मुझे बचाने दौड़े तो दंगाइयों ने उन्हें पकड़ लिया और पीटने लगे.’

उन्होंने आगे बताया, ‘दो लोग लगातार मुझे अपशब्द बोलते हुए मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे. इस बीच शोर-शराबा सुनकर पड़ोस के कुछ लोग आए और हमें बचाया. इसके बाद तो सबको पता है कि दंगाइयों की एक बड़ी भीड़ टूट पड़ी. हम लोग इतना डर गए थे कि रात में अपने घर भी नहीं गए, एक पड़ोसी के घर में हमने रात गुजारी.’