दिल्ली सरकार पर लग गई लगाम, केजरीवाल का हुआ ये हाल

जंतर मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन का विरोध करते हुए, 17 मार्च को पार्टी के सांसद संजय सिंह की भावनात्मक नाराजगी विधेयक और केंद्र के खिलाफ दिखाई दी।

 

लेकिन, केजरीवाल ने दो बार लगातार जीत दिलाने वाले मतदाताओं को इस बारे में स्पष्ट करने की जहमत नहीं उठाई कि कैसे उनके वोट को बेकार कर दिया गया है।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अनिल चौधरी का कहना है, “यह एक ऐसी पार्टी थी जिसकी अराजकतावादी सड़क विरोध प्रदर्शनों में अपना जनाधार था।

यहां तक कि अपनी चुनावी जीत के शुरुआती वर्षों में आप अपने शासनादेश में थोड़ी सी भी रुकावट के विरोध में सड़कों पर उतरती थी लेकिन आज केजरीवाल और उनके सहयोगी संसद के बाहर या एलजी के आवास पर धरने पर बैठने की बात नहीं कर रहे हैं।।

आज, जब चुनी हुई सरकार को केंद्र सरकार की कठपुतली बना दिया गया है, जिसके तार एलजी के पास होंगे, तो उन्होंने अपनी संवैधानिक-गारंटीकृत शक्तियों की रक्षा के लिए एक अभियान शुरू करने की भी जहमत नहीं उठाई।

क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप, जिन्होंने दिल्ली की चुनी हुई सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों की रक्षा के लिए केंद्र के खिलाफ तीन साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, इस मुद्दे पर शांत हो गए हैं या सरकार भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा शक्तियां कम करने को लेकर अपना पक्ष रखने के लिए मजबूर हैं।

यदि हाँ, तो पार्टी ने अपने लाखों मतदाताओं को यह क्यों नहीं समझाया है कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि अब एलजी के अनुसार काम करेंगे और आप सरकार, को अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, हर विधायी, नीति या कार्यकारी मामले पर प्रशासक की राय का इंतजार करना होगा?

यदि नहीं, तो आप ने अपने मतदाताओं को इस बारे में स्पष्टीकरण नहीं दिया कि यह उनके वोट के मूल्य को कैसे संरक्षित किया जाएगा, जैसा कि जनता में केजरीवाल की पार्टी ने विकास कार्यों और सुधारों की उम्मीद जगाई थी।

आम आदमी पार्टी (आप) सहित 12 विपक्षी दलों के विरोध के बीच संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम को पारित किए एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो गया है, जिसे सभी ने असंवैधानिक करार दिया था।

इस अधिनियम में निर्वाचित सरकार और विधानसभा को दरकिनार करते हुए दिल्ली के मनोनीत उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ा दी गई हैं। जब कानून पेश किया तो बहस के दौरान आप ने इसका विरोध किया लेकिन अब उसने चुप्पी साध ली है।

जाहिर तौर पर नए कानून के प्रावधानों से सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी की चुप्पी खासौतर पर जब से राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 28 मार्च को संशोधित अधिनियम में अपनी सहमति दी है, सवालों के घेरे में है।