चीन ने चली 1962 जैसी चाल, ध्यान भटकाक इक्कठा कर रहा…

दरअसल 1950 के दशक में कोरियाई युद्ध ने जवाहर लाल नेहरू सरकार और भारतीय कूटनीति के लिए एक मुश्किल रूप ले लिया था, क्योंकि वे 1962 में पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्र में चीन की सेना के लिए अपने खुद के झंडे को खुला छोड़ कर उत्तर कोरिया के मुद्दे को सुलझाने में जुट गए थे. पीएलए ने 1962 में भारत पर हमला करने का समय तब चुना, जब पूरी दुनिया का ध्यान क्यूबा मिसाइल संकट की तरफ था.

निक्केई एशियन रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, PLA ने अपने दक्षिणी थिएटर कमांड को जुटाया है, जो दक्षिण चीन सागर में, उत्तरी थिएटर कमान, जो विदेशी कोरियाई प्रायद्वीप में और पूर्वी थिएटर कमान, जो कट्टर प्रतिद्वंद्वी जापान और ताइवान पर नजर रखता है.

अखबार ने कहा कि जिस तरह 1950 के दशक में चीन ने कोरियाई युद्ध का सहारा लेकर तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, उसी तरह वर्तमान में PLA हिमालय क्षेत्र में चल रहे असल गतिरोध से ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की मूवमेंट कर रहा है.

मालूम हो कि मास्को में 10 सितंबर को भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद, सैन्य कमांडरों को डिसइंगेजमेंट यानी सैनिकों के पीछे हटने और डी-एसक्लेशन यानी सैनिकों की संख्या कम करने को लेकर हुए समझौते को जमीन पर लागू करने के लिए कहने का निर्णय लिया गया था. दोनों पक्ष अभी भी बैठक के लिए सुविधाजनक तारीख तय करने में लगे हैं, लेकिन इस सप्ताह में इसकी संभावना है.

हालांकि, भारत और चीन दोनों ने एक दूसरे को अभी भी सैन्य कमांडरों की बैठक की तारीखों को अंतिम रूप देने के लिए कहा है. साथ ही पीएलए का पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ 1,597 किलोमीटर लंबी लाइन-अप का निर्माण भी जारी है.

भारत के साथ सीमा पर चल रहे गतिरोध और टकराव के बीच पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने अपने पांच सैन्य बलों में से चार को पूर्वी चीन सागर और येलो सी से दक्षिण चीन सागर में जुटा लिया है, जहां चीन ने अपने नागरिकों का ध्यान लद्दाख से भटकाने के लिए लाइव फायरिंग ड्रिल और सैन्य अभ्यास भी किए हैं.