कोरोना की दूसरी लहर के बीच तेजी से फ़ैल रहा ब्लैक फंगस, अब तक 212 लोगों की जा चुकी जान

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने संक्रमण की रोकथाम के लिए कंट्रोल नॉर्म्स का सावधानीपूर्वक पालन करने को जरूरी बताया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने निमोनिया, कैथेटर से जुड़े खून, सर्जिकल साइट संक्रमण और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रकोप की निगरानी पर भी जोर दिया है.

 

नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पाल ने 22 मई को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि कोरोना संक्रमितों के उपचार में स्टेरॉयड का सही अनुपात में उपयोग नहीं किए जाने को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

हालांकि, विशेषज्ञों का मत इससे अलग है. विशेषज्ञों ने कोरोना संक्रमितों के उपचार में जिंक का उपयोग बंद कराने की मांग की और कहा कि इस बीमारी के पीछे अन्य कारणों का पता लगाना चाहिए. इस संबंध में इंडियन मेडिकल एसोसिशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर राजीव जयदेवन ने कहा कि शरीर में जिंक और आयरन जैसी धातु की मौजूदगी ब्लैक फंगस के लिए उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करती है.

ब्लैक फंगस कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों, रोग प्रतिरक्षा से समझौता करने वाले व्यक्तियों, सुगर या स्टेरॉयड की अधिक खुराक वाले लोगों को प्रभावित करता है. इस बीमारी की चपेट में अब कुछ ऐसे युवा भी दिख रहे हैं.

जिनका इम्यूनोसप्रेशन का इतिहास नहीं है. यह चिंता की बात है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से ब्लैक फंगस के प्रसार को रोकने के निर्देश दिए गए थे. इसके बाद तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा, बिहार, उत्तराखंड, राजस्थान, तेलंगाना और चंडीगढ़ में इसे महामारी घोषित किया गया है.

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच इन दिनों ब्लैक फंगस के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. 22 मई तक देशभर से कोरोना संक्रमितों में ब्लैक फंगस के लगभग नौ हजार मामले सामने आ चुके हैं.

मिट्टी में पाए जाने वाले मोल्ड और कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से होने वाली इस दुर्लभ बीमारी के कारण अब तक 212 लोगों की जान जा चुकी है. इसमें महाराष्ट्र के 90 और 61 लोग गुजरात के शामिल हैं.