महाराष्ट्र में सियासी उथल-पुथल के बाद पिछले साल जून के आखिरी दिनों में बनी एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना और बीजेपी सरकार अपनी पहली चुनावी परीक्षा में फेल रही है।
विधान परिषद की पांच सीटों पर हुए चुनाव में इस गठबंधन को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिल सकी है। बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान उसे अपने गढ़ में ही हुआ है। नागपुर से उसके दो बार के विधायक रहे नागो गरार की करारी हार हुई है।
हैट्रिक का सपना चकनाचूर: नागपुर शिक्षक एमएलसी सीट पर गरार की जीत की हैट्रिक लगाने को लेकर बीजेपी आश्वस्त थी क्योंकि वह सीटिंग विधायक थे लेकिन यहां से महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार सुधाकर अड़बाले ने बाजी मार ली है। नागपुर राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का क्षेत्र है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है।
महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार अड़बाले ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि उसकी जीत के पीछे देवेंद्र फड़णवीस का हाथ है। दरअसल, फडणवीस ने कुछ दिनों पहले ओल्ड पेंशन स्कीम पर विधानसभा में कहा था कि उनकी सरकार का पुराने पेंशन को लागू करने का कोई विचार नहीं है। माना जा रहा है कि उनके इस बयान से सरकारी नौकरीपेशा लोगों में नाराजगी है। चूंकि, इस चुनाव में शिक्षक ही मतदाता थे, इसलिए पुरानी पेंशन को ही बहाल रखने के फडणवीस के ऐलान से शिक्षक जगत नाराज रहा।
इसके अलावा में बीजेपी के भीतर खेमेबाजी को भी इस हार का एक कारण माना जा रहा है। नागपुर में बीजेपी के भीतर एक खेमा नितिन गडकरी का माना जाता है तो दूसरा खेमा देवेंद्र फड़णवीस का माना जाता है। माना जा रहा है कि दोनों गुटों का भीतरी कलह भी इस हार के कारणों में शामिल रहा है। इस इलाके का ओबीसी जातीय समीकरण (तेली, माली और कुनबी) भी इस हार के लिए जिम्मेदार है। तेली बीजेपी के कट्टर समर्थक रहे हैं, जबकि बाकी दोनों जातियां उसकी विरोधी। अड़बाले माली जाति से ताल्लुक रखते हैं।
इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी को पांच में से तीन सीटों पर जीत मिली है, जबकि सत्ताधारी बीजेपी-शिंदे गुट गठबंधन अभी एक सीट ही जीत मिल सकी है। नासिक से निर्दलीय उम्मीदवार सत्यजीत ताम्बे की जीत हुई है। कांग्रेस के खिलाफ नामांकन करने पर ताम्बा को पार्टी ने निलंबित कर दिया था। उन्होंने अपने अगले कदम का ऐलान नहीं किया है।