बिरसा और जयपाल मुंडा की धरती पर पीएम की रैली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज झारखंड के खूंटी में चुनावी सभा को संबोधित करने जा रहे हैं. खूंटी झारखंड की वह जमीन है जहां पर भारत के दो नायकों ने जन्म लिया था. ठेठ देहाती पृष्ठभूमि से निकले ये दो नायक अपनी संघर्ष क्षमता और जीवटता के बल पर अलग-अलग क्षेत्रों में सितारा बनकर चमके. हम बात कर रहे हैं बिरसा मुंडा और जयपाल सिंह मुंडा की. खूंटी के उलीहातू गांव में जन्मे बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के आदि नायकों में हैं. मात्र 25 साल में शहीद होने वाले बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ उलगुलान यानी क्रांति का आह्वान किया था. छोटी सी अवधि में उन्होंने अंग्रेजों को झारखंड के जंगलों से कई बार खदेड़ा. मुंडा जनजाति के इस नौजवान ने अपनी ऊर्जा और संगठन क्षमता से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.

खूंटी की ही धरती पर पैदा हुए जयपाल सिंह मुंडा हॉकी के धुरंधर खिलाड़ी रहे. इनकी अगुवाई में ब्रिटिश भारत ने ओलंपिक में हॉकी गोल्ड मेडल जीता था. जयपाल सिंह मुंडा बाद में झारखंड में राजनीति करने लगे. जयपाल सिंह मुंडा उन चुनिंदा नेताओं में से थे जिन्होंने आजादी से पहले ही अलग झारखंड का सपना देखा था. मुंडा ने आदिवासी महासभा नाम की संस्था का गठन किया था. जब देश का संविधान लिखने की बारी आई तो ऑक्सफोर्ड में पढ़े जयपाल सिंह मुंडा संविधान सभा के योग्य सदस्य बने.

बिरसा-जयपाल की परंपरा के आदिवासियों को देशद्रोह का खौफ

बड़ी हैरानी की बात है कि बिरसा मुंडा और जयपाल सिंह मुंडा की परंपरा के आदिवासियों को आज राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक कानून के खौफ का सामना करना पड़ रहा है. बुधवार (3 दिसंबर) को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस इलाके में जनता से वोट मांगने के लिए आएंगे तो ये सवाल उनके सामने खड़ा होगा. दरअसल इस खूंटी के आस-पास के गांवों के सैकड़ों-हजारों आदिवासी युवा भारतीय दंड संहिता की धारा-124 A के तहत आरोपी हैं. सवाल उठता है कि आखिर इन आदिवासियों का कसूर क्या है जो पुलिस ने इन्हें इस गंभीर ‘अपराध’ का आरोपी बनाया है. खूंटी पुलिस पर आरोप है कि उसने बड़े पैमाने पर ग्रामीणों और आदिवासियों पर राजद्रोह के मामले दर्ज किए हैं. स्क्रॉल डॉट इन की एक रिपोर्ट के अनुसार खूंटी में 11,200 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए . जिसमें लगभग 10,000 लोगों पर देशद्रोह का आरोप है.

समझें पत्थलगड़ी आंदोलन

पत्थलगड़ी आदिवासी समाज का एक रिवाज है, जो सालों से चल रहा है. छोटानागपुर में मुंडा, उरांव और संथाल जनजातियां इस प्रथा का पालन करती है. इसके तहत आदिवासी अपने मृतक पुरखों की याद में अपने गांव, आंगन या किसी पवित्र जगह पर एक पत्थर गाड़ते हैं. इस प्रक्रिया को पत्थलगड़ी कहा जाता है. इस प्रक्रिया का तरीका अलग है, लेकिन इसका मकसद है मृत्यु प्राप्त कर चुके अपने प्रियजनों को याद करना. झारखंड के हजारीबाग स्थित विनोबा भावे विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ शांति खलखो कहती हैं कि विवाह, मृत्यु की तरह पत्थलगड़ी भी आदिवासी समाज का संस्कार है.

संस्कार से सरकार को दिक्कत क्यों?

पत्थलगड़ी परंपरा यहां तक तो ठीक थी. झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के लगभग 200 गांवों में पिछले तीन चार सालों से इसका पालन किया जा रहा था. लेकिन दिक्कत तब पैदा हुई जब इस परंपरा का राजनीतिक स्वरुप सामने आया. दरअसल खूंटी में कुछ सजग आदिवासियों ने इस आंदोलन के तहत बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान के तहत आदिवासियों को मिले अधिकारों को लिख-लिख कर जगह जगह जमीन पर गाड़ दिया. विवाद की जड़ इन पत्थरों पर लिखे कथन हैं.