रूस और सऊदी अरब में बड़ी बैठक, कच्चे तेल के उत्पादन पर फैसला

दुनिया में सबसे ज्यादा कच्चे तेल (Crude Oil Price) का उत्पादन करने वाले देश रूस और सऊदी अरब (Saudi Arabia) ऑस्ट्रिया (Austria) की राजधानी वियाना में बड़ी बैठक कर रहे है. इस बैठक में क्रूड यानी कच्चे तेल के उत्पादन पर फैसला होगा. अगर शुक्रवार को ये देश कच्चे तेल (Crude Oil Price) के उत्पादन में कटौती पर फैसला ले लेते है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  क्रूड की सप्लाई घट जाएगी और कीमतों में बड़ा उछाल आएगा. इससे भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी तेजी से बढ़ सकते है. ऐसे में आम आदमी की जेब पर बोझ पड़ेगा.


अब क्या होगा- शुक्रवार को ओपेक तेल उत्पादक देश इस बात पर विचार करेंगे कि पिछले तीन साल से वह जो कटौती कर रहे हैं उस पर टिके रहें या उसमें कुछ कमी लाएं या दाम में वृद्धि की उम्मीद में इस कटौती को और ज्यादा किया जाए. यह बातचीत तनाव के बीच हो रही है जिसमें सदस्य देश प्रतिस्पर्धी दिशाओं में बढ़ रहे हैं.

सऊदी अरब पर दबाव बढ़ा- सऊदी की सरकारी तेल कंपनी अरामको के शेयर बाजार में उतरने के बीच सऊदी अरब काफी असमंजस की स्थिति में पड़ गया है. वह इस पशोपेश में है कि तेल उत्पादन की कितनी मात्रा से दाम बेहतर स्तर पर होंगे. इसके साथ ही उस पर अरामको के शेयरधारकों का भी अब अतिरिक्त दबाव होगा. हालांकि, ओपेक के कुछ सदस्य देश ऐसे भी हैं जो कि समझौते को नजरअंदाज कर रहे हैं और उन्हें आवंटित मात्रा से अधिक उत्पादन कर रहे हैं.

क्या करता है ओपेक- कच्चा तेल को एक्सपोर्ट करने वाले देशों का संगठन ओपेक है. यह साल 1960 के दशक में तेल उत्पादन, कीमतों और नीतियों के समन्वय के लिए बना एक अंतर-सरकारी संगठन है. आज दुनियाभर के 14 देश इसमें शामिल है.

क्रूड यानी कच्चे तेल के महंगा होने से आम आदमी पर क्या असर होगा

(1) आम आदमी की जेब पर भी बढ़ेगा बोझ- एक्सपर्ट्स बताते हैं कि विदेशी बाजार में कच्चा तेल महंगा होने से भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ सकते है. भारत, सऊदी अरब का दूसरा बड़ा ग्राहक है. ऐसे में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का असर भारत पर भी पड़ेगा.

(2) महंगे क्रूड से देश की अर्थव्यवस्था पर होगा असर- ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी नोमुरा के अनुमान के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत के राजकोषीय घाटे और करंट अकाउंट बैलेंस पर असर होता है. मतलब साफ है कि महंगे क्रूड से जीडीपी पर 0.10 से 0.40 फीसदी तक का बोझ बढ़ जाता है. सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था कि तेल की कीमतों में $10 प्रति बैरल की वृद्धि जीडीपी ग्रोथ को 0.2 से 0.3 प्रतिशत नीचे ला सकती है. वर्तमान में करंट अकाउंट डेफिसिट 9 से 10 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है.

(3) महंगाई का डर- अंतरराष्ट्रीय बाजारों में क्रूड महंगा होने से इंडियन बास्केट में भी क्रूड महंगा हो जाता है. इससे तेल कंपनियों (HPCL, BPCL, IOC) पर दबाव बढ़ता है कि वो भी महंगा कच्चा तेल खरीदने पर पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाएं. ऐसे में पेट्रोल और डीजल महंगा होने से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ जाता है, जिससे महंगाई बढ़ने का डर होता है.

(3) बढ़ेगा देश का करंट अकाउंट डेफिसिट- भारत अपनी जरूरतों का करीब 82 फीसदी क्रूड खरीदता है. ऐसे में क्रूड की कीमतें बढ़ने से देश का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) बढ़ सकता है. क्रूड की कीमतें लगातार बढ़ने से भारत का इंपोर्ट बिल उसी रेश्‍यो में महंगा होगा, जिससे करंट अकाउंट डेफिसिट की स्थिति बिगड़ेगी. देश की अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर पड़ने से आम आदमी भी प्रभावित होता है.

(I) आपको बता दें कि किसी देश के करंट अकाउंट डेफिसिट यानी (सीएडी) से पता चलता है कि उसने गुड्स, सर्विस और ट्रांसफर्स के एक्सपोर्ट के मुकाबले कितना ज्यादा इंपोर्ट किया है. यह जरूरी नहीं है कि करंट अकाउंट डेफिसिट देश के लिए नुकसानदेह ही होगा.

(II) भारत जैसे विकासशील देशों में लोकल प्रॉडक्टिविटी और फ्यूचर में एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए शॉर्ट टर्म में करंट अकाउंट डेफिसिट हो सकता है. लेकिन लॉन्ग टर्म में करंट अकाउंट डेफिसिटी इकनॉमी का दम निकाल सकती है.

(III) करंट अकाउंट डेफिसिट को घटाने के उपाय बहुत कम रह गए हैं, क्योंकि हर हाल में इंपोर्ट होने वाली चीजों की कीमत बढ़ रही है. इंडियन इकनॉमिक हालत को देखते हुए इसका सीएडी 2.5 फीसदी होना चाहिए.

(4) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आएगी रुपये में कमजोरी-एक्सपर्ट्स का कहना है कि क्रूड अगर महंगा होता है तो करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने के साथ ही रुपये में कमजोरी आ सकती सकती है. फिलहाल अभी डॉलर के मुकाबले रुपया स्टेबल है और इस पर ज्यादा असर नहीं दिखा है.