अयोध्या मुद्दे में वर्ष 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिए गए निर्णय के नौ वर्ष बाद आज उच्चतम न्यायालय का निर्णय आया है.
आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपना निर्णय सुनाया. उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट कह दिया कि अयोध्या की विवादित ढांचे वाली जमीन पर मंदिर बनेगा. वहीं इसके बदले मस्जिद के लिए मुस्लिमों को सरकार पांच एकड़ जमीन उपयुक्त जगह पर देगी.अयोध्या मुद्दे में शनिवार को उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने से पहले अयोध्या समेत देश भर में सुरक्षा के पुख्ता बंदोवस्त किए गए हैं.
इससे पहले उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में विवादित 2.77 एकड़ धरती को तीनों पक्षों- रामलला, सुन्नी वक्फ बोर्ड व निमोर्ही अखाड़े में बराबर बांटा था. उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 30 सितंबर 2010 को अपने निर्णय में विवादित धरती पर हिंदुओं व मुस्लिमों को संयुक्त रूप से मालिक माना था उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में बोला था कि मुख्य गुंबद के नीचे, जहां भगवान राम व अन्य देवताओं का अस्थाई मंदिर स्थित है, वह जमीन हिंदुओं की है. तीनों न्यायाधीशों ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया था कि मुख्य गुंबद के नीचे की जमीन हिंदुओं को मिलनी चाहिए.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय 6,000 पन्नों पर दिया गया था. उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने नौ मई 2011 को उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी. उच्चतम न्यायालय में अपनी बहस आगे बढ़ाते हुए हिंदू पक्षों ने बोला कि हिंदुओं की मान्यताओं का विभाजन नहीं होने कि सम्भावना व पूरी विवादित जमीन पर कब्जे का दावा किया.
‘शेबैत’ (देवता की सेवा करने वाला भक्त) होने का दावा करने वाले निमोहीर् अखाड़ा ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि जमीन का टुकड़ा भगवान राम की जन्मभूमि है व यह उसी का है.
अखाड़ा ने अपनी दलीलों में बोला कि यह अखाड़ा के अधिकार में है, जो इसके महंत व सरबराहकार के जरिए प्रबंधक के रूप में कार्य करता रहा है. रामलला के वकीलों ने तर्क दिया कि वैसे के लिए शेबैत एकमात्र आदमी है जो मूर्ति के हितों की रक्षा करने के लिए सक्षम है, समर्पित संपत्ति पर उसका अधिकार है.
हिंदू पक्ष के मुकदमों के जवाब में मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट ने ज्यादा दलील दी. मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि आंतरिक व बाहरी प्रांगण के साथ-साथ विवादित ढांचे के बारे में उपस्थित मुकदमे सभी भिन्न-भिन्न प्रेयर्स के साथ दायर किए गए हैं. जबकि मुकदमा एक को केवल पूजा के अधिकार का दावा करने के लिए दायर किया गया था, मुकदमा तीन (निमोर्ही अखाड़ा) कथित मंदिर के प्रबंधन और प्रभार के लिए दायर किया गया था. केवल मुकदमा चार (सुन्नी वक्फ बोर्ड) व मुकदमा पांच (राम लला) ऐसे हैं, जिसमें कि पक्षों ने विवादित संपत्ति पर अधिकार का दावा किया है.”
सुन्नी वक्फ बोर्ड पहले ही उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमति जता चुका है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में विवादित स्थल को सार्वजनिक मस्जिद बताया है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 16 अक्टूबर को इस विवादास्पद मामले पर अपनी सुनवाई पूरी की थी. पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस। ए। बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी। वाई चंद्रचूड़ व न्यायमूर्ति एस। ए। नजीर शामिल हैं.